उत्तर प्रदेश के सरकारी विद्यालयों में नियुक्ति से वंचित बीएड 2011 के अचयनित अभ्यर्थी बेरोजगार पिछले 11 साल बीत जाने के बावजूद आज भी अपनी लड़ाई उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ कोर्ट में मजबूती के साथ संघ के अध्यक्ष सुनील यादव की अगुवाई में लड़ रहे हैं।
जीवित है 2012 के न्यू एड विज्ञापन पर आई 72825 शिक्षकों की शिक्षक भर्ती: सुनील यादव
बीएड टेट बेरोजगार एसोसिएशन के अध्यक्ष सुनील यादव का कहना है कि कोर्ट में जीत मिलेगी या हार हम इस पर विचार नहीं कर रहे बल्कि हमें सरकार से 2012 के न्यू एड के विज्ञापन से संबंधित सारे सवालों के जवाब जानने हैं जिनका जवाब सरकार ने या तो दिया नहीं या झूठे हलफनामे के द्वारा कोर्ट को गुमराह किया है। सुनील यादव ने कहा की नियुक्ति हमारा हक है हम इसे लेकर रहेंगे।
सुनील यादव ने कहा कि हमारी कई याचिकाएं सरकार द्वारा कोर्ट में दिए गए कई झूठे हलफनामे की वजह से खारिज हुई हैं। यदि कोर्ट में जज के द्वारा हमारी याचिका को विस्तार से सुना जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा कि हम सभी को नियुक्ति देने के साथ सरकार की नौकरशाही में कई अफसर निलंबित हो जाएं।
संघ का मानना है कि 2012 के न्यू ऐड के विज्ञापन से संबंधित ऐसे कई सवाल हैं जो सुप्रीम कोर्ट को सरकार से पूछना ही चाहिए।
संघ के सभी पदाधिकारियों का मानना है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सरकार की ओर से पैरवी करने वाले वकीलों से पूछेंगे कि जब 2012 के विज्ञापन की फीस वापसी नहीं की तो उसका झूठा हलफ नामा कोर्ट में क्यों दिया।
क्या सरकारी वकीलों के द्वारा देश के सबसे बड़े कोर्ट सुप्रीम कोर्ट में झूठा हलफनामा देने पर कोर्ट द्वारा उनके ऊपर कोई दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी।
जब खुद सुप्रीम कोर्ट ने न्यू ऐड के विज्ञापन पर सरकार को भर्ती करने के लिए लिबर्टी दी तो फिर सरकार ने उस पर कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया।
जब यूपी सरकार को 2012 के न्यू ऐड के अभ्यर्थियों की फीस वापस करनी थी तो 2017 के आदेश के बाद तुरंत बाद क्यों नहीं की, जब अभ्यर्थी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तब फीस वापसी का आदेश क्यों निकाला।
2017 के सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्णय में 72825 शिक्षक भर्ती के जब दोनों विज्ञापनों को अलग माना गया और जिस पर सरकार फीस वापसी का झूठा हलफनामा कोर्ट में दे चुकी है तो उस पर सरकार ने अभ्यर्थियों को नियुक्ति से वंचित क्यों रखा।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को उत्तर प्रदेश सरकार से यह भी पूछना चाहिए कि 2011 के विज्ञापन पर हुई 72825 शिक्षक भर्ती के शेष 6170 पदों का सरकार ने क्या किया।
सुप्रीम कोर्ट को पूछना चाहिए कि 68500 शिक्षक भर्ती में बचे हुए तकरीबन 26000 शिक्षक पदों का क्या हुआ और इस भर्ती में बीएड टेट पास अभ्यर्थियों को मौका क्यों नहीं दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट का यह भी पूछना चाहिए कि किस नियमावली के तहत 69000 शिक्षक भर्ती में चयन करने के क्राइटेरिया को एकेडमिक, टेट मेरिट, सुपर टेट मेरिट की प्रतिशत अंकों को बदला गया।
सुप्रीम कोर्ट को पूछना चाहिए कि डिजिटल जमाने के आजाद भारत में शिक्षक भर्ती में चयन की सामान्य प्रक्रिया का निर्धारण अब तक क्यों नहीं हुआ।
बता दें कि 2011 की 72825 शिक्षक भर्ती टेट मेरिट, 3 साल पहले संपन्न हुई 68500 शिक्षक भर्ती लिखित परीक्षा, और हाल ही में संपन्न हुई 69000 शिक्षक भर्ती सुपर टेट के प्रतिशत अंकों पर संपन्न तो हुई मगर इन सभी भर्तियों में कोई ना कोई विवाद जुड़ा रहा।
सूत्रों की माने तो जहां 2011 में संपन्न हुई 72825 शिक्षक भर्ती के 6175 पदों का आज तक नहीं पता चला कि वह कहां गए। ऐसे ही 68500 शिक्षक भर्ती के तकरीबन 26000 पदों का कोई अता पता नहीं वहीं हाल ही में संपन्न हुई 69000 शिक्षक भर्ती में हुए घोटाले का समाधान अब तक नहीं निकला।
कुल मिलाकर याचियों का कहना है कि 2017 में आए सुप्रीम कोर्ट के अंतिम आदेश में 168000 शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द कर दिया गया था जो अखिलेश सरकार में शिक्षक पद पर समायोजित हुए थे और तो और शिक्षामित्रों के समायोजन रद्द होने पर हुए रिक्त पदों पर यूपी सरकार अभी सभी पदों पर शिक्षक भर्ती नहीं कर पाई। बेसिक में नई शिक्षक भर्ती की तो बात ही क्या करें।