दीपावली पंचपर्व का आखिरी त्योहार भैयादूज छह नवंबर को बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाएगा। इस दिन भाई बहन के घर पहुँचकर तिलक लगवाकर उन्हें सदा सुहागन रहने और उसकी सदा रक्षा करने का वचन देता है।
मान्यता के अनुसार इस दिन भाई यदि बहन के घर भोजन करता है तो उसे यमराज और उसके दूत का डर नहीं सताता है। हिंदुओं में भाई दूज, यम द्वितीया, भाई टीका का त्योहार शुक्ल पक्ष के दूसरे चंद्र दिन विक्रम संवत् हिन्दू पंचांग या कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को मनाया जाता है।भाई दूज कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को मनाया जाता है।
इस दिन के उत्सव रक्षा बंधन के त्योहार के समान हैं। इस दिन बहनें अपने भाइयों को उपहार देती हैं। द्वितीया तिथि को यह पूजन होने से इसका नाम दूज है और भाई की पूजा इसमें होती है, बहनें भाई के माथे पर आशीर्वाद रूपी टीका लगती हैं इसलिए इस दिन को भाई दूज कहा जाता है।ऐसी मान्यता है कि जिन महिलाओं के भाई दूर रहते हैं और वह उन तक भैयादूज के दिन नहीं पहुंच पाती। वह इस खास दिन नारियल के गोले को तिलक करके रख लेती हैं और फिर जब उन्हें मौका मिलता है, वह भाई के घर जाकर उन्हें यह गोला भेंट करती हैं।
भाई दूज पूजा मुहूर्त
भाई दूज का त्योहार शुभ मुहूर्त में मनाने से लाभ होता जबकि राहु काल में भाई को तिलक करने से बचना चाहिए।
● भाई दूज की द्वितीया तिथि 5 नवंबर को रात्रि 11 बजकर 14 मिनट से लगेगी जो 6 नवंबर को शाम 7 बजकर 44 मिनट तक बनी रहेगी।
● इस दिन भाईयों को तिलक लगाने का शुभ मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 10 बजे से लेकर 3 बजकर 21 बजे तक रहेगा यानि तिलक करने का शुभ मुहूर्त 2 घंटा 11 मिनट तक रहेगा।
पूजा सामग्री लिस्ट
भाई दूज के दिन पूजा सामग्री में कुछ चीजों को जरूर शामिल करना चाहिए।
● आरती की थाली, टीका,
● चावल, नारियल, सूखा नारियल, ●मिठाई, कलावा, दीया, धूप और रुमाल
थाली में रखें ये जरूर सामान
भाई दूज पर भाई की आरती उतारते वक्त बहन की थाली में सिंदूर, फूल, चावल के दाने, सुपारी, पान का पत्ता, चांदी का सिक्का, नारियल, फूल माला, मिठाई, कलावा, दूब घास और केला जरूर होना चाहिए. इन सभी चीजों के बिना भाई दूज का त्योहार अधूरा माना जाता है।
भाईदूज पर भाई को तिलक करते समय पढ़ें ये मंत्र
भाई दूज के दिन बहनें अपने भाई की लंबी उम्र की कामना करती हैं और साथ ही भगवान से भाई के जीवन में खुशहाली का आशीर्वाद मांगती हैं। इस दिन पूजा के दौरान मंत्र भी पढ़ा जाता है।
ये है मंत्र- ‘गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजे कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई की आयु बढ़े।
पौराणिक कथा
मान्यताओं अनुसार इस दिन मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमुना के अनेकों बार बुलाने के बाद उनके घर गए थे। यमुना ने यमराज को भोजन कराया और तिलक कर उनके खुशहाल जीवन की प्रार्थना की। प्रसन्न होकर यमराज ने बहन यमुना से वर मांगने को कहा। यमुना ने कहा आप हर साल इस दिन मेरे घर आया करो और इस दिन जो बहन अपने भाई का तिलक करेगी उसे आपका भय नहीं रहेगा। यमराज ने यमुना को आशीष प्रदान किया। कहते हैं इसी दिन से भाई दूज पर्व की शुरुआत हुई।
द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण ने नरक चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया था तो अगले दिन दिवाली का त्योहार मनाया गया था। इसके बाद श्रीकृष्ण कार्तिक कृष्ण द्वितीया को अपनी नगरी द्वारिका लौटकर आए थे। द्वारिका लौटने पर देवी सुभद्रा ने अपने भाई श्रीकृष्ण की आरती की और उन्हें टीका लगाकर खूब आशीर्वाद दिया क्योंकि नरकासुर से बंधन से श्रीकृष्ण ने हजारों कन्याओ को मुक्त करवाया था। उस दिन से ही कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को बहनें भाई को टीका करती हैं।