कल 2 नवंबर दिन सोमवार 2020 को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र (आइएसएस) गत दो दशक से पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगा रहा है। सोमवार को इसमें मनुष्यों के ठहरने के 20 साल पूरे होंगे। इस केंद्र की जब स्थापना हुई और पहली बार अंतरिक्ष यात्री इसमें रहने गए तब वहां तंग, नमी युक्त तीन छोटे कमरे थे।
गत 20 वर्षों आइएसएस ने कई बदलाव देखे हैं। अब यह टावर सा लगने वाला जटिल ढांचा बन गया है, जिसमें तीन शौचालय, सोने के छह कंपार्टमेंट और 12 कमरे हैं।अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र में अब तक 19 देशों के अंतरिक्ष यात्रियों को रहने का मौका मिला है। इनमें मरम्मत कार्य की खातिर कई बार जाने वाले अंतरिक्ष यात्री और अपने खर्च पर पहुंचने वाले पर्यटक शामिल हैं। आइएसएस पर सबसे पहले पहुंचने वालों में अमेरिका के बिल शेफर्ड और रूस के सर्जेइ क्रिक्लेव व यूरी गिडजेंको थे।
उन्होंने कजाखस्तान से 31 अक्टूबर, 2000 को यात्रा शुरू की थी और दो दिन बाद यानी दो नवंबर, 2000 को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र का दरवाजा खोला था।बिल शेफर्ड और सर्जेइ क्रिक्लेव एवं यूरी गिडजेंको आइएसएस के रूप में विज्ञान के नए युग की शुरुआत कर रहे थे। एकजुटता प्रकट करने के लिए वे एक दूसरे का हाथ थामे हुए थे।
शेफर्ड अमेरिकी नौसेना के सील कमांडर थे, जिन्होंने स्टेशन कमांडर की भूमिका निभाई। तीनों शुरुआती अंतरिक्ष यात्रियों ने अपना अधिकतर समय आज के मुकाबले कहीं कठिन परिस्थितियों में उपकरणों को ठीक करने और उन्हें लगाने में खर्च किया।
इस बीच भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के पूर्व अध्यक्ष के कस्तूरीरंगन ने कहा है कि उपग्रह प्रक्षेपण यानों की विफलताओं पर मंथन के साथ साथ प्रौद्योगिकी संबंधी चुनौतियों के समाधान से ही स्पेस के क्षेत्र में भारत की सफलता का रास्ता खुला है। पीएसएलवी और जीएसएलवी की मौजूदा तकनीक इसी सफलता का नतीजा है। उन्होंने यह भी बताया कि पहले दो एएसएलवी यानों की असफलता से भारतीय वैज्ञानिकों में निराशा पैदा हो गई थी।