मुख्य न्यायाधीश अकील कुरैशी तथा न्यायाधीश सुदेश बंसल की खंडपीठ ने तीन दिन तक लगातार सुनवाई के बाद NCTE की अधिसूचना की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली बीएसटीसी धारकों की याचिकाओं को स्वीकार कर लिया जबकि बीएड डिग्रीधारियों की याचिकाएं खारिज कर दी।कोर्ट ने इस मामले में पिछले गुरुवार को यह फैसला सुनाया था।
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने रीट लेवल प्रथम के शिक्षकों की भर्ती में बीएड डिग्रीधारियों को अवसर नहीं दिए जाने पर यह मामला कोर्ट पहुँचा था और बाद में सरकार के अनुमति देने पर बीएसटीसी योग्यता वाले अभ्यर्थियों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
बीएसटीसी धारकों की अपील
बीएसटीसी अभ्यर्थियों की ओर से अधिवक्ता विज्ञान शाह तथा हनुमान चौधरी ने NCTE की अधिसूचना को असंवैधानिक बताते हुए कहा कि केंद्र ऐसे निर्देश जारी नहीं कर सकता।
बीएड डिग्री अभ्यर्थियों की ये थी दलील
बीएड डिग्री धारक अभ्यर्थियों की ओर से कहा गया था कि नेशनल कौंसिल फॉर टीचर एजुकेशन (NCTE) ने 28 जून 2018 को जारी अधिसूचना में बीएड डिग्रीधारी अभ्यर्थियों को ब्रिज कोर्स करने पर रीट लेवल—प्रथम की भर्ती के लिए पात्र मान लिया। NCTE ने केंद्र सरकार की 30 मई, 2018 के निर्देश पर यह अधिसूचना जारी की थी।
हाल ही में राजस्थान उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि NCTE की 2018 की अधिसूचना, जो कि प्राथमिक स्तर के छात्रों को पढ़ाने के लिए बी.एड डिग्री धारकों को रीट [राजस्थान पात्रता शिक्षकों के लिए परीक्षा] स्तर I परीक्षा लेने की अनुमति देता है, वह असंवैधानिक है।
हाईकोर्ट ने बीएड डिग्रीधारियों तथा डीएलएड (NIOS ) धारकों को राजस्थान शिक्षक पात्रता परीक्षा लेवल प्रथम के लिए योग्य नहीं माना है। रीट लेवल—प्रथम के जरिए पांचवी तक की कक्षा पढ़ाने वाले शिक्षकों का चयन किया जाता है। कोर्ट ने नेशनल कौंसिल फॉर टीचर एजुकेशन(एनसीटीई) की उस अधिसूचना को भी रद्द कर दिया जिसमें चयन के दो साल के भीतर ब्रिज कोर्स करने वाले बीएड डिग्रीधारियों को रीट लेवल—प्रथम में नियुक्ति का पात्र मान लिया था।
राज्य सरकार का वक्तव्य
● राज्य सरकार ने आरम्भ में यह माना था कि बीएड डिग्री धारी रीट लेवल प्रथम के लिए पात्र नहीं है।
● महाधिवक्ता एमएस सिंघवी ने NCTE की अधिसूचना पर भी सवाल उठाए।
●सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि रीट परीक्षा में बीएसटीसी की योग्यता रखने वाले 3 लाख 50 हजार अभ्यर्थियों ने भाग लिया
● जबकि प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक स्तर प्रथम के 18 हजार 850 पद ही रिक्त है।
कोर्ट के निर्देश पर शामिल किए बीएड डिग्रीधारी
इससे पहले कोर्ट ने सितंबर माह में सुनवाई के दौरान याचिकाओं के निर्णय के अधीन रखते हुए राजस्थान शिक्षक पात्रता परीक्षा (REET) स्तर प्रथम में बीएड डिग्रीधारियों तथा डीएलएड (एनआईओएस) धारकों को बैठने की अनुमति दी थी। इन अभ्यर्थियों का परिणाम कोर्ट की अनुमति के बिना घोषित नहीं किए जाने के निर्देश दिए गए
कोर्ट का आदेश
● शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 23 की उपधारा (2) का विश्लेषण करते हुए कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार के पास ऐसे मामलों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए योग्यता में ढील देने का अधिकार है जहाँ पाठ्यक्रम की पेशकश करने वाले अपर्याप्त संस्थान हैं या शिक्षक शिक्षा में प्रशिक्षण या राज्य में न्यूनतम योग्यता रखने वाले शिक्षक ना हो।
● इस संबंध में, न्यायालय ने इस तथ्य पर विचार किया कि केंद्र सरकार ने धारा 23 की उप-धारा (2) के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिए पात्र उम्मीदवारों की संख्या के संबंध में रिक्तियों की संख्या पर डेटा एकत्र करने की कवायद नहीं की थी।
● कोर्ट की राय थी कि शिक्षक नियुक्ति के लिए न्यूनतम योग्यता निर्धारित करने में एनसीटीई (NCTE) को केंद्र सरकार द्वारा जारी किसी भी निर्देश से निर्देशित या बाध्य नहीं होना चाहिए।
● दरअसल, कोर्ट ने कहा कि एनसीटीई (NCTE) की राय थी कि बी.एड. केवीएस के उद्देश्य के लिए एक वैकल्पिक योग्यता के रूप में मान्यता दी जा सकती है जहाँ पर्याप्त संख्या में अन्यथा योग्य उम्मीदवार की आपूर्ति नहीं हो पा रही थी।
● “एनसीटीई की राय के बावजूद, मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने बीएड को सभी स्कूलों के लिए एक अतिरिक्त योग्यता के रूप में मान्यता दी। यह स्पष्ट रूप से केंद्र सरकार की क्षमताओं से परे था।
● इन परिस्थितियों में, कोर्ट ने फैसला सुनाया कि 28 जून 2018 में एनसीटीई द्वारा जारी की गई अधिसूचना, गैरकानूनी है क्योंकि यह केंद्र सरकार द्वारा निर्देशित किया गया था ना की NCTE द्वारा स्वयं और इस तथ्य के बावजूद भी कि केंद्र सरकार के पास आरटीई अधिनियम की धारा 23 की उपधारा (1) के तहत ऐसा करने का अधिकार नहीं था।
● कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसा नहीं था आरटीई अधिनियम की धारा 23 की उप-धारा (2) के तहत केंद्र सरकार की शक्ति के प्रयोग में किया गया जो केंद्र सरकार को एनसीटीई द्वारा निर्धारित पात्रता मानदंड में ढील देने की अनुमति देता है, न ही ऐसी शक्ति का प्रयोग करने के लिए पूर्ववर्ती शर्तों के अस्तित्व को निर्धारित करने के लिए कोई अभ्यास किया गया था।