किरतपुर बिजनौर के खण्ड शिक्षा अधिकारी चरन सिंह ने समस्त प्राथमिक- उच्च प्राथमिक – कम्पोजिट विद्यालयों में कार्यरत शिक्षक कर्मचारियों को अजीबोगरीब आदेश दिया है जिसकी शिक्षकों ने भर्त्सना की है।
खण्ड शिक्षा अधिकारी चरन सिंह ने आदेश में कहा है कि प्रायः देखने में आ रहा है कि विकास क्षेत्र किरतपुर में संचालित कुछ विद्यालयों में कार्यरत प्रधानाचार्य, इंचार्ज प्रधानाचार्य , सहायक अध्यापक, शिक्षामित्र, अनुदेशक विद्यालय समय में अपने पाल्यों ( बच्चों ) को देखरेख हेतु विद्यालय में लेकर आ रहे हैं जिससे शिक्षण व्यवस्था एवं विभागीय कार्यों में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है।
अतः विकास क्षेत्र किरतपुर में संचालित सभी शिक्षण कर्मचारियों को आदेशित किया जाता है कि विद्यालय संचालन के समय अपने पाल्यों ( बच्चों ) को साथ में लेकर विद्यालय न आयें । यदि निरीक्षण के दौरान किसी के भी द्वारा उक्त का परिपालन नहीं मिलता है तो सम्बन्धित के विरूद्ध विभागीय अनुशासनात्मक कार्यवाही अमल में लाई जायेगी । जिसका सम्पूर्ण उत्तरदायित्व सम्बन्धित का होगा । उक्त में लापरवाही क्षम्य नहीं होगी।
इस आदेश के आने के बाद शिक्षकों ने इसे तुगलकी फरमान बताया तो किसी ने तालिबानी। महिला शिक्षकों का कहना है कि दो साल तक के बच्चे मां के दूध पर निर्भर रहते हैं ऐसे में खण्ड शिक्षा अधिकारी का ऐसा फरमान जेंडर भेदभाव का दर्शा रहा है। शिक्षण व्यवस्था स्कूलों में शिक्षकों की कमी से बिगड़ रही है न कि पाल्यों को स्कूल लाने में।
नाम न लिखने पर एक महिला शिक्षक ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि पुरुष वर्ग बच्चे पैदा करने लगें खास कर शिक्षा से जुड़े ऐसे अधिकारी, तो फिर किसी भी महिला शिक्षक को अपने पाल्यों को अपने वर्क प्लेस पर लाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
वहीं एक महिला शिक्षक ने कहा कि कुछ समय पहले ब्राज़ील की संसद में डिबेट करते हुए अपने बच्चे को स्तनपान कराने वाली महिला सांसद की एक तस्वीर वायरल हुई थी तो क्या ब्राजील संसद ने अपने पाल्यों को संसद में न लाने का कोई फरमान निकाला था ।क्या ऐसे ही आदेशों से पूरा होगा मिशन शक्ति का सपना और फिर ये तो भारत है जहाँ कहा जाता है यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
सैल्यूट है मातृत्व भाव की पराकाष्ठा और नारी के इस कुंठामुक्त अस्तित्व को। सच है नारी को ख़ुद उस जंजीर को तोड़ना होगा जिससे हज़ारों साल से पुरूष ने मर्यादा और संस्कार के नाम से उसे जकड़ रखा है। गंदगी उसके निगाह में है और वर्जना नारी के अस्तित्व पर। पुरूष समाज के मनीषी अपनी दमित काम – वासना की कुंठा से सम्पूर्ण नारी जाति को ही कुठिंत दमित बना दिया है जबकि वास्तविकता यह है कि मुक्त और स्वतंत्र नारी अस्तित्व ही पुरूष समाज के इस कुंठा का इलाज है।