सम्पूर्ण मानव सभ्यता के इतिहास में सबसे फोकट का अविष्कार अगर हुआ है तो वो है वाशिंग मशीन।
ये किसलिए बनाई गई है , ये काम आसान करती है या बढ़ाती है, अव्वल तो कपड़ो को गोल गोल घुमाना एकमात्र काम है इसका , ऊपर से कपड़ो में गांठे अलग लगा देती है एक दूसरे में , जितना टाइम धोने में नही लगता उतना तो कपड़े सुलझाने में लगता है
शर्ट की बाजू पैंट में घुसी हुई है , पैंट का एक हिस्सा साड़ी में से निकल कर बनियान से होता हुआ दुप्पटे को पेटीकोट से अटैच कर रहा है
टाइमर ऑफ होने के बाद मशीन का ढक्कन खोलो तो ऐसा लगता है, शादी की प्लेट लिए फूफा बैठे हैं जिसमें चावल में गुलाबजामुन है , अचार में पनीर है ,पापड़ में रसमलाई है और पूरिया खीरे टमाटर में दबी कुचली आखरी सांसे गिन रही हैं..
इतना सब होने के बाद टाइमर पूरा होने पर आवाज़ ऐसी कर्कश आती है जैसे मशीन धमका रही हो कि निकाल लो इससे पहले कपड़े आपस में एक दूसरे का गला घोंट के मार दें , गुत्थम गुत्था होकर।
धुल गए साब कपड़े जैसे तैसे , तो एक ड्रायर नामक अज़ाब साइड में इंतज़ार कर रहा होता है , इसमें कपड़े सेट करना , अपने आप में एक जटिल प्रक्रिया है, अगर ज़्यादा भर दिए तो घूमने से साफ इंकार कर देगा , कम भरे तो पूरी मशीन घुमा देगा पर खुद नही घूमेगा।
बस कपड़ों की अदला बदली कर के चलाते रहें कि शायद अब सही से घूम जाए ये मरदूद ड्राय।
फिर उसमें भी कपड़ें पुनः उलझ जाते हैं , तो कुल मिला कर मेरा ये मानना है कि ये वॉशिंग मशीन बनाई ही इंसान को परेशान करने के लिए गई थी ।
ये कोई ऑब्जरवेशन या आप के हंसी मजाक के लिए नही लिखा गया है बल्कि लेखक आज कपड़े धो रहा है।
स्रोत : सोशल मीडिया