आज के ही दिन 19 दिसंबर 1927 को तीन क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया गया था। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह उन महान स्वतंत्रता सेनानियों में से हैं, जिन्होंने देश की खातिर सब कुछ न्यौछावर कर खुशी-खुशी फांसी का फंदा चूम लिया। ब्रिटिश हूकुमत से देश को आजाद कराने की खातिर कई महान स्वतंत्रता सेनानियों ने खुशी-खुशी अपने प्राणों का बलिदान दिया है। आज के ही दिन इन क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया गया था। यही वजह है कि देश में 19 दिसंबर को शहादत दिवस के रूप में मनाया जाता है।
माँ भारती के अमर सपूत, स्वाधीनता संग्राम के नायक, महान क्रांतिकारी पं. राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को उनके बलिदान दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि।
राष्ट्र के प्रति आप सभी का समर्पण हमारे लिए आदर्श है। आपका बलिदान हमें युग-युगांतर तक प्रेरित करता रहेगा।
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) December 18, 2021
जंग-ए-आजादी की इसी कड़ी में 1925 में एक महत्वपूर्ण घटना घटी, जब नौ अगस्त को चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह सहित 10 क्रांतिकारियों ने लखनऊ से 14 मील दूर काकोरी और आलमनगर के बीच ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया।
इतिहासकार हरिशंकर प्रसाद के अनुसार इन जांबाजों ने जो खजाना लूटा, दरअसल वह हिन्दुस्तानियों के ही खून पसीने की कमाई थी।
जिस पर अंग्रेजों का कब्जा था, लूटे गए धन का इस्तेमाल क्रांतिकारी हथियार खरीदने और जंग-ए-आजादी को जारी रखने के लिए करना चाहते थे. इतिहास में यह घटना काकोरी कांड के नाम से जानी गई।
ट्रेन से खजाना लुट जाने से ब्रितानिया हुकूमत बुरी तरह तिलमिला गई और अपनी बर्बरता तेज कर दी। आखिर इस घटना में शामिल सभी क्रांतिकारी पकड़े गए सिर्फ चंद्रशेखर आजाद हाथ नहीं आए।
हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (एचएसआरए) के 45 सदस्यों पर मुकदमा चलाया गया जिनमें से राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई।
गोरी हुकूमत ने पक्षपातपूर्ण ढंग से मुकदमा चलाया जिसकी बड़े पैमाने पर निन्दा हुई। डकैती जैसे अपराध में फांसी की सजा अपने आप में एक विचित्र घटना थी।फांसी के लिए 19 दिसंबर 1927 की तारीख मुकर्रर हुई लेकिन राजेंद्र लाहिड़ी को इससे दो दिन पहले 17 दिसंबर को ही गोंडा जेल में फांसी दे दी गई।
राम प्रसाद बिस्मिल को 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल और अशफाक उल्ला खान को इसी दिन फैजाबाद जेल में फांसी दी गई।
रोशन सिंह को भी 19 दिसंबर को फांसी पर लटका दिया गया। क्रान्तिकारी बिस्मिल, अशफाक व रोशन उत्तर प्रदेश के जनपद शाहजहाँपुर के रहने वाले थे।
जीवन की अंतिम घड़ी में भी इन महान देशभक्तों के चेहरे पर मौत का कोई भय नहीं था। दोनों हंसते-हंसते भारत मां के चरणों में अपने प्राण अर्पित कर गए।
काकोरी कांड में शामिल सभी क्रांतिकारी उच्च शिक्षित थे। बिस्मिल जहां प्रसिद्ध कवि थे वहीं भाषाई ज्ञान में भी निपुण थे। उन्हें अंग्रेजी, हिन्दुस्तानी, उर्दू और बांग्ला भाषा का अच्छा ज्ञान था। अशफाक उल्ला खान इंजीनियर थे।
क्रांतिकारियों ने काकोरी की घटना को काफी चतुराई से अंजाम दिया था।इसके लिए उन्होंने अपने नाम तक बदल लिए थे।
हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी ने शचींद्रनाथ सान्याल और रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 1921 में गदर पार्टी के अधूरे कार्य को आगे बढाने का लिए हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया गया। क्रांतिकारी शचींद्रनाथ सान्याल अंडमान से काला पानी की सजा भुगतकर लौटे और बनारस को अपना केंद्र बना कर फिर आज़ादी का शंखनाद फूंका। हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन द्वारा अंजाम दिया गया काकोरी काँड भारत के क्राँतिकारी इतिहास में एक मील के पथ्थर की तरह है। इस क्राँतिकारी काँड में लखनऊ के निकट काकोरी नामक स्थान पर 8 डाउन कोलकत्ता मेल पर धावा बोलकर हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के लीडर रामप्रसाद बिस्मिल की कयादत में 9 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों द्वारा सरकारी खजाना लूट लिया गया। इस क्रांतिकारी कार्यवाही में अशफाकउल्ला खान, ठाकुर रौशन सिंह, राजेंद्र लहडी़, योगेश चटर्जी, चंद्रशेखर आज़ाद, मन्मथनाथ गुप्त, रामदुलारे त्रिवेदी, प्रवणेश चटर्जी, रामनाथ पाँडे, मुकंदीलाल, रामकुमार सिन्हा, कुंदनलाल रामकृष्ण खत्री, प्रेमकिशन खन्ना, बनवारीलाल, सुरेश भट्टाचार्य, भूपेंद्र सान्याल, गोविंद चरण आदि क्रांतिकारियों ने शिरकत अंजाम दी।
काकोरी काँड की क्रांतिकारी कार्यवाही को अंजाम देने की योजना का सूत्रपात मेरठ शहर को वैश्य अनाथालय से हुआ, जहाँ कि मवाना के एक क्राँतिकारी विष्णुशरण दुबलिष अधीक्षक के तौर पर कार्यरत थे। काकोरी काँड की तैयारी के सिलसिले में अनेक क्रांतिकारियों का वैश्य अनाथालय में बेसरा रहा। क्राँतिकारी विष्णुशरण दुबलिश को काकोरी काँड के मुलजिम के तौर पर 26 सितम्बर 1925 को ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार किया। काकोरी काँड की क्रांतिकारी कार्यवाही के दौरान किसी क्रांतिकारी का एक गर्म शॉल घटना स्थल पर गलती से छूट गया था। इस गर्म शॉल के ड्राइकिलीनर के पते पर पुलिस ने पंहुच कर क्रांतिकारियों का सुराग हासिल कर लिया और एक के बाद दूसरे क्रांतिकारी को गिरफ्तार कर लिया गया। क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद और कुंदनलाल को ब्रिटिश पुलिस अंत तक गिरफ्तार नहीं कर सकी।
काकोरी काँड का मुकदमा लखनऊ की सेशन कोर्ट में 19 महीने तक इंडियन पीनल कोड की धारा 121ए, 120बी, 369 को तहत चला। 6 अप्रैल 1927 को सेशन कोर्ट द्वारा क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, ठाकुर रौशन सिंह और राजेंद्र लहडी़ को सजाए मौत दी गई। हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के शीर्ष नेता शचींद्रनाथ सान्याल को आजन्म कारावास (काला पानी) की सजा, योगेश चटर्जी और मन्मथनाथ गुप्त को 20 साल की कैद ए बामशक्कत की सजा और बाकी क्रांतिकारियों को भी मुखतलिफ़ अवधियों की कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। मेरठ के क्राँतिकारी विष्णुशरण दुबलिश को 10 वर्ष के लिए अंडमान में कैद ए बामशक्कत की सजा का ऐलान किया गया।
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के क्राँतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद ने जोकि काकोरी काँड में गिरफ्तारी से किसी तरह बच निकले थे और निरंतर फरार बने रहे। क्राँतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद ने अपनी अद्भुत वीरता और संगठन क्षमता के बलबूते पर हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी को पुनर्जीवित कर दिखाया।भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, शिववर्मा, जतीनदास, विजय कुमार सिन्हा, यशपाल, भगवतीचरण वोहरा, दुर्गा भाभी, सदाशिवराव मालापुरकर, भगवानदास माहौर, प्रकाशवती, सुशीला सरीखे सैकडो़ क्राँतिकारियों को संगठित किया। भगतसिंह ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को समाजवाद के महान् आदर्शो से ओतप्रोत किया। फिरोजशाह कोटला मैदान दिल्ली में देशभर से एकत्र हुए क्रांतिकारियों की सहमति से क्राँतिकारी दल के साथ समाजवादी शब्द को संलग्न कर दिया गया और दल का उद्देश्य आजादी हासिल करने के साथ ही समतापूर्ण समाज की स्थापना करना घोषित किया गया। समतापूर्ण समाजवादी भारत को निर्मित करने का क्रांतिकारी स्वप्न अभी अधूरा है जिसे कि भारत के नौजवानों को क्राँतिकारी शहीदों के चरित्र से सद्प्रेरणा लेकर साकार करना है।