उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों का प्रान आवंटन कर NPS न लेने वाले शिक्षकों का वेतन बाधित कर देने वाले आदेश पर आज हाईकोर्ट में रोक लगा दी।
हाईकोर्ट में सरकार द्वारा जबरदस्ती एनपीएस लागू करने के बात प्रान आवंटन करने के संबंध में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने इस संबंध में कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखा जिसमें कोर्ट ने कार्रवाई करते हुए वेतन बाधित करने वाले आदेश पर रोक लगा दी।
याचिकाकर्ता योगेंद्र कुमार सागर व अन्य के वकील जितेंद्र विक्रम, रवींद्र कुमार यादव प्रतिवादी के वकील सीएससी, अजय कुमार, रण विजय सिंह के अधिवक्ता और राज्य के विद्वान स्थायी अधिवक्ता को जस्टिस पंकज भाटिया ने सुना।
शिक्षकों द्वारा डाली गई वर्तमान याचिका में उठाया गया मुद्दा राज्य सरकार द्वारा राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली में अनिवार्य रूप से लागू करने के निर्देश के संबंध में था।
याचिकाकर्ता के विद्वान वकील ने कोर्ट में जस्टिस के सामने कहा का तर्क है कि उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा दिनांक 28.3.2005 की एक अधिसूचना के माध्यम से राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली को उन कर्मचारियों के लिए अनिवार्य कर दिया गया था जो 1.4.2005 के बाद शामिल हुए थे और उन कर्मचारियों के संबंध में स्वैच्छिक बना दिया गया था जो 1.4. 2005 से पहले कार्यरत थे।
याचिकाकर्ता के वकील के द्वारा यह तर्क दिया गया है कि कोर्ट में आए याचिकाकर्ताओं ने राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली का विकल्प नहीं चुना है अधिवक्ता ने तर्क देते हुए कहा है कि राज्य सरकार ने दिनांक 16.12.2022 को एक सरकारी आदेश जारी किया है जिसके तहत खंड 3(V) के आधार पर यह प्रावधान किया गया है कि जो कर्मचारी राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली का विकल्प नहीं चुनते हैं और PRAN के तहत अपना पंजीकरण नहीं करवाते हैं। वेतन के हकदार नहीं होंगे। उक्त सरकारी आदेश को मुख्य रूप से इस आधार पर चुनौती दी जा रही है कि जिस रूप में राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली की परिकल्पना की गई है, उसे कर्मचारियों के लिए अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता है और किसी भी स्थिति में उनके वेतन को केवल इसलिए नहीं रोका जा सकता है क्योंकि याचिकाकर्ता राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के विकल्प चुनने को तैयार नहीं हैं इसलिए इस मामले पर विचार करने की आवश्यकता है।
इसके बाद कोर्ट के जस्टिस द्वारा याचिका से जुड़े सभी अधिवक्ताओं के नोटिस को स्वीकार करते हुए अगले 6 सप्ताह के अंदर अपना अपना हलफनामा दाखिल करने का 6 सप्ताह का समय दिया है बता दें कि उसके बाद दो सप्ताह के भीतर प्रत्युत्तर हलफनामा दायर किया जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि अगले आदेश तक याचिकाकर्ताओं को वेतन केवल इस आधार पर नहीं रोका जाएगा जिसमें उन्होंने 16.12.2022 के सरकारी आदेश के खंड 3(V) के अनुसार PRAN के तहत पंजीकरण का विकल्प नहीं चुना है।