यूपी के परिषदीय स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों के लिए एमडीएम खिलाने में शिक्षक हजारों से लाखों रुपए के कर्जदार हो गए। मीडिया सूत्रों से मिली खबर के मुताबिक अकेले कानपुर में शिक्षको का तकरीबन ₹20 करोड़ उत्तर प्रदेश शासन पर बकाया है। इसी तरह उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में भी एमडीएम का करोड़ों को रुपया शासन पर बकाया हो गया है।
Read more: Mid Day Meal Conversion Cost: केंद्र द्वारा MDM के कन्वर्जन कॉस्ट में 9.6% की हुई बढ़ोत्तरी
गौरतलब है कि सन 2020 की शुरुआत में पिछली बढ़ोतरी के बाद से कक्षा 1से 5 तक की प्राथमिक कक्षाओं में प्रति बच्चा खाना पकाने की लागत 4.97 रुपये प्रति बच्चा और कक्षा 6 से 8 तक उच्च प्राथमिक कक्षाओं में प्रति बच्चा खाना पकाने की लागत 7.45 रुपये रही है। मगर बढ़ोतरी के प्रभावी होने के बाद प्राथमिक स्तर और उच्च प्राथमिक स्तर पर मिड डे मील की दरों का आवंटन क्रमशः 5.45 रुपये और 8.17 रुपये हो गया है।
एमडीएम की आवंटित धनराशि के हिसाब से अगर केवल 50 बच्चों का MDM खिलाने के लिए खर्च की जा रही राशि का कैलकुलेशन किया जाए तो कितना होगा।प्राथमिक स्कूल में पढ़ रहे एक बच्चे का 4.97 रुपए की लागत से तकरीबन एक माह में स्कूल खुलने वाले दिनों तकरीबन 24 दिनों में खर्च होने वाली राशि 24*5.45 =130.8 रुपए होगी जो तकरीबन 100 बच्चों पर 13 हजार 80 रुपए हो जाएगी।
इसी तरह उच्च प्राथमिक विद्यालय के एक बच्चे पर खर्च होने वाली राशि 24*8.17=196.08 होगी जो मासिक तकरीबन 100 बच्चों पर 19 हजार 608 हो जाएगी। मतलब कैलकुलेशन के हिसाब से कक्षा 1 से 8 तक 50 – 50 बच्चों पर कुल धनराशि 16 हजार 344 प्रति माह होगी जो वार्षिक तकरीबन 50 बच्चों पर 1 लाख 96 हजार 128 होगी। अब सोचने वाली बात यह है कि जिन स्कूलों में मिड डे मील खाने वाले बच्चों की संख्या 200 से ऊपर है वहां स्कूल के प्रधानाध्यापक या इंचार्ज प्रधानाध्यापक पर एमडीएम खिलाने का कितना अतिरिक्त भार पड़ता होगा।
वैसे स्कूलों पर खर्च होने वाली इन सभी धन राशियों के आंकड़ों का कोई मतलब नहीं क्योंकि इन सभी धनराशि को खर्च करने के लिए राज्य सरकारें और केंद्र सरकारें धनराशि आवंटित करती हैं मगर मुश्किलें तब खड़ी हो जाती है जब एमडीएम का पैसा सालों तक एमडीएम खिला रहे शिक्षकों तक नहीं पहुंचता।
उत्तर प्रदेश में परिषदीय स्कूलों को एमडीएम के लिए भले ही कन्वर्जन कास्ट (परिवर्तन लागत ) व खाद्यान्न की धनराशि उपलब्ध कराई जाती है मगर जनवरी से अब तक कन्वर्जन कास्ट और खाद्यान्न पर संकट छाया हुआ है।
गौर करने वाली बात यह है कि शासन द्वारा पैसा आवंटित न करने के बावजूद शिक्षकों को एमडीएम बनवाने और खिलाने के सख्त निर्देश दिए गए हैं। विभागीय आदेशों का पालन करते करते कई शिक्षकों ने या तो अपनी जेब से सामान खरीदा या किराने की दुकानों पर हजारों के कर्जदार है।
इसके अलावा वर्ष 2021 से फलों का बजट आवंटित नहीं किया गया जो प्रत्येक सप्ताह में एक बार ₹4 की धनराशि के हिसाब से बच्चों को दिया जाता है और हर सप्ताह में एक बार दिए जाने वाले दूध की तो कोई भी अतिरिक्त धनराशि भी नहीं दी जाती वह धनराशि भी कन्वर्जन कास्ट में ही एडजेस्ट की जाती है।
बता दें कि खाना पकाने की लागत में खाद्यान्न की लागत पूरी तरह से केंद्र सरकार द्वारा वहन की जाती है जिसमें अब की 2022-23 में 660 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि खर्च करनी होगी जबकि राज्य संशोधित को लागू करने के लिए वार्षिक बजट में स्वीकृत की तुलना में 400 करोड़ रुपये अधिक खर्च करेंगे।
MDM में कब – कब हुई वृद्धि
* 2010-11 और 2015-16 के बीच खाना पकाने की लागत में सालाना 7.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
* 2016-17 में यह 7 प्रतिशत बढ़ा और बाद के वर्ष के दौरान, कोई बदलाव नहीं हुआ।
* 2018 में 5.35 प्रतिशत,
* 2019-20 में 3.09 प्रतिशत
* 2020-21 में 10.99 प्रतिशत
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में चलाई जा रही मिड डे मील योजना सेंट्रल गवर्नमेंट द्वारा चलाई गई एक योजना है जिसके जरिए स्कूल में पढ़ रहे बच्चों को पोषक और स्वादिष्ट भोजन खाने के लिए दिया जाता है और यह योजना देश के प्रत्येक राज्य में संचालित है। इस योजना के तहत प्रत्येक 11.8 करोड़ बच्चों को स्कूल में भोजन करवाया जाता है।