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इस साल पितृपक्ष 20 सितंबर से शुरू होकर 6 अक्टूबर को समाप्त होगा। पितृ पक्ष का आरंभ आश्विन मास महीने की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से होता है जो आश्विन अमावस्या तिथि को समाप्त होता है। 15 दिन चलने वाले पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान कर्म, तर्पण और दान आदि किया जाता है।
पिता, पितृ और पूर्वज से हमें अपनी जड़ों का बोध होता है। पितृ को ही पितर भी कहते हैं। आध्यात्म के अनुसार एक स्थूल देह के अंत के बाद दशविधि और त्रयोदश कर्म-सपिण्डन तक दिवंगत आत्मा प्रेत शरीर में होती है। प्रेत यानी देह की अस्थायी व्यवस्था। सुरत अर्थात आत्मा पंचभौतिक देह के त्याग के बाद जिस अस्थायी देह को प्राप्त होती है उसे ही प्रेत शरीर कहते हैं। यूँ समझे कि एक दैहिक जीवन में बने प्रियजन, प्रियतम व प्रिय वस्तुओं के बिछोह की स्थिति प्रेत है।
क्या होता है पितृ
पंचभौतिक देह के त्याग के बाद रूह में देह नष्ट होने के बाद भी काम, क्रोध लोभ, मोह, अहंकार, तृष्णा और क्षुधा शेष रह जाती है। सपिण्डन के बाद पश्चात वो जब अस्थायी प्रेत शरीर से नए तन में अवतरित होती है पितृ कहलाती है।
आपको बता दें इसके साथ ही इस महत्वपूर्ण पितृ पक्ष में पितरों के श्राद्ध वाले दिन कौआ को भी भोजन कराया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भोजन कौवों के माध्यम से पितरों तक पहुँच जाता है। मान्यता है कि इस दिन पितर कौवे के रूप में पृथ्वी पर आते हैं।
पितृ पक्ष तर्पण विधि
परिजनों की श्राद्ध तिथि पर तर्पण करते समय पितरों की मुक्ति के लिए मंत्र जपे जाते हैं। पितरों को जल देने की विधि तर्पण कहलाती है। आज हम आपको कुछ ऐसे मंत्र बता रहे हैं जिनका उच्चारण आप पितरों की मुक्ति के लिए तर्पण करते समय जप सकते हैं।
इसके लिए आप सबसे पहले पितरों का ध्यान करते हुए दोनों हाथ जोड़ लें। अब उन्हें ‘ओम आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम’ मंत्र के माध्यम से आमंत्रित करें। आपकी जानकारी के लिए बता दें ‘ओम आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम’ का अर्थ होता है ‘हे पितरों, आइये और जलांजलि ग्रहण कीजिये।
दादा जी के तर्पण का मंत्र
दादा जी को तर्पण देते समय अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, ‘गोत्रे अस्मत्पितामह (दादा जी का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः’ मंत्र का जप करें. जल देते समय अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, ‘गोत्रे अस्मत्पितामह (दादा जी का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः’।
दादी के तर्पण का मंत्र
दादी को तर्पण देते समय ‘गोत्र का नाम लें गोत्रे पितामां दादी का नाम देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः,तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः’ मंत्र का जाप करें. इसके साथ आप ‘(गोत्र का नाम लें) गोत्रे पितामां (दादी का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः,तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः’ का जाप करें।
पिता के तर्पण का मंत्र
पिता को तर्पण देते समय आप गंगा जल में दूध, तिल, जौ मिलाकर तीन बार जलांजलि दें। ध्यान दें कि जल देते समय मन में कहें वसु रूप में मेरे पिता जल ग्रहण करके तृप्त हों। इसके साथ ही गोत्र का नाम लेकर ‘गोत्रे अस्मतपिता (पिता जी का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः’ मंत्र का जप करें।
माता के तर्पण का मंत्र
माता को तर्पण देते समय मन में स्मरण करते हुए माता को तर्पण देते समय अपने गोत्र का नाम (माता का नाम) ‘देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः’ मंत्र का जाप करें इसके साथ ही आप (गोत्र का नाम) ‘गोत्रे अस्मन्माता (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः’ मंत्र का भी जप करें।
पितृ गायत्री मंत्र
ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।
ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि। शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्।
ओम् देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।
ऐसे करें श्राद्ध तर्पण
ब्राह्मणों के अनुसार सुबह स्नान के बाद पितरों का तर्पण करने के लिए सबसे पहले हाथ में कुश लेकर दोनों हाथों को जोड़कर पितरों का ध्यान करें और उन्हें अपनी पूजा स्वीकार करने के लिए आमंत्रित करें। पितरों को तर्पण में जल, तिल और फूल अर्पित करें। इसके साथ ही जिस दिन पितरों की मृत्यु हुई है, उस दिन उनके नाम से और अपनी श्रद्धा और यथाशक्ति के अनुसार भोजन बनवाकर ब्राह्मणों को दान करें। कौवा और श्वान में भी भोजन वितरित करें।
श्राद्ध करने वाले नहीं करें ये काम
मान्यता के अनुसार जो श्राद्ध करने के अधिकारी हैं उन्हें पूरे 15 दिनों तक और कर्म नहीं करना चाहिए। पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। प्रतिदिन स्नान के बाद तर्पण करके ही कुछ खाना पीना चाहिए। तेल-उबटन आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए।
ऐसे बनता है पितृ दोष
पितृ दोष, राहु और केतु से बनता है
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में जब नवम भाव में राहु या केतु विराजमान हो जाएं तो व्यक्ति पितृ दोष से पीड़ित माना जाता है। पितृ दोष की स्थिति को इस लक्षणों के आधार पर भी समझा जा सकता है। पितृ दोष की स्थिति में कुंडली में होने पर घर में विवाद की स्थिति बनी रहती है।
• घर के बड़ों का सम्मान धीरे धीरे कम होने लगता है। घर के मुखिया को अपमान सहना पड़ता है।
• कलह और तनाव की स्थिति बनी रहती है। घर में प्रवेश करते हैं मन खराब होने लगता है।
•दांपत्य जीवन में मधुरता नहीं रहती है और निरंतर हानि बनी रहती है।
• जमा पूंजी नष्ट हो जाती।व्यक्ति कर्ज में डूब जाता है। बुरी संगत में पड़ जाता है
आइए जानते हैं पितृ दोष दूर करने के उपाय
● पितृ दोष दूर करने के लिए श्राद्ध पक्ष में पंचबली भोग लगाना चाहिए। पंचबली भोग में गाय, कौआ, कुत्ता, देव और चीटी आते हैं। इतना ही नहीं 15 दिन तक लगातार कौवों को खाना खिलाना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मणों को भी भोजन जरूर कराएं।
● पितृ दोष दूर करने के लिए घर की दक्षिण दिशा में पूर्वजों की तस्वीर लगानी चाहिए इसके साथ ही आप जब भी घर से बाहर जाएं या किसी शुभ काम के लिए निकलें तो पितरों का आर्शीवाद लेकर ही बाहर जाएं।
● पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए पितृ पक्ष के दौरान ब्राह्मणों को या जरूरतमंदों का भोजन जरूर करना चाहिए और उन्हें सम्मान पूर्वक दान-दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए ब्राह्मणों को भोजन कराते समय याद रखें कि वे पूर्वजों की पसंद का हो और अपने हाथों से बनाया गया हो।
● पितृ दोष दूर करने के लिए श्राद्ध पक्ष में पंचबली भोग लगाना चाहिए. पंचबली भोग में गाय, कौआ, कुत्ता, देव और चीटी आते हैं. इतना ही नहीं 15 दिन तक लगातार कौवों को खाना खिलाना चाहिए इसके बाद ब्राह्मणों को भी भोजन जरूर कराएं।
● पितृ दोष दूर करने के लिए घर की दक्षिण दिशा में पूर्वजों की तस्वीर लगानी चाहिए इसके साथ ही आप जब भी घर से बाहर जाएं या किसी शुभ काम के लिए निकलें तो पितरों का आर्शीवाद लेकर ही बाहर जाएं।
● पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए पितृ पक्ष के दौरान ब्राह्मणों को या जरूरतमंदों का भोजन जरूर करना चाहिए और उन्हें सम्मान पूर्वक दान-दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराते समय याद रखें कि वे पूर्वजों की पसंद का हो और अपने हाथों से बनाया गया हो.
● पितृ पक्ष के दौरान कुत्ता, गाय, कौवा, चिड़ियां आदि को रोटी खिलाएं
15 दिन आसपास रहते हैं पितृगण
शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष 15 दिन तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते हैं। इस दौरान पितृ अपने परिजनों के आसपास रहते हैं इसलिए इन दिनों कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिससे पितृ नाराज हों। पितृ पक्ष के दौरान शाकाहारी भोजन का ही सेवन करना चाहिए अगर आप नॉन-वेज और शराब आदि का सेवन करते हैं तो इनसे बचना चाहिए।
इन कार्यों से नाराज होते हैं पितृ
श्राद्ध कर्म करने वाले सदस्य को इन दिनों बाल और नाखून नहीं काटने चाहिए। उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन भी करना चाहिए। श्राद्ध कर्म हमेशा दिन में करें।सूर्यास्त के बाद श्राद्ध करना अशुभ माना जाता है। इन दिनों में लौकी, खीरा, चना, जीरा और सरसों का साग नहीं खाना चाहिए। जानवरों या पक्षी को सताना या परेशान भी नहीं करना है।
पितृ को प्रसन्न करने के लिए करें ये काम
पितृ पक्ष में अगर कोई जानवर या पक्षी आपके घर आए तो उसे भोजन जरूर कराना चाहिए मान्यता है कि पूर्वज इन रूप में आपसे मिलने आते हैं। पितृ पक्ष में पत्तल पर भोजन करें और ब्राह्राणों को भी पत्तल में भोजन कराएं तो यह फलदायी होता है।
नहीं करें ये शुभ काम
पितृ पक्ष में कोई भी शुभ काम जैसे शादी, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश, घर के लिए महत्वपूर्ण चीजों की खरीददारी नहीं करें। नए कपड़े या किसी प्रकार की खरीददारी को भी अशुभ माना जाता है। इस दौरान बेहद सादा जीवन जीने और सात्विक भोजन करने के लिए भी कहा गया है।
पितृ दोष से मुक्ति के उपाय
श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त तर्पण किया जाता है। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार कुंडली में दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें और दसवें भाव में सूर्य राहु या सूर्य शनि की युति बनने पर पितृ दोष लगता है। सूर्य के तुला राशि में रहने पर या राहु या शनि के साथ युति होने पर इस दोष का प्रभाव बढ़ जाता है। इसके साथ ही लग्नेश का छठे, आठवें, बारहवें भाव में होने और लग्न में राहु के होने पर भी पितृ दोष लगता है। पितृ दोष की वजह से व्यक्ति का जीवन परेशानियों से भर जाता है।
इस दोष से मुक्ति के लिए श्राद्ध पक्ष में पितरों का स्मरण कर पिंड दान करना चाहिए और अपनी गलतियों के लिए माफी मांगनी चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सभी तरह के दोषों से मुक्ति के लिए हनुमान जी की पूजा- अर्चना करनी चाहिए। हनुमान जी की पूजा- अर्चना करने से पितृ दोष समेत सभी तरह के दोषों से मुक्ति मिल जाती है। रोजाना हनुमान चालीसा का पाठ करने से हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन सुखमय हो जाता है।
महालया (पितृ विसर्जनी अमावस्या)
मान्यता के अनुसार आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या को पितृ विसर्जनी अमावस्या या महालया कहते हैं। जो व्यक्ति पितृ पक्ष के 15 दिनों तक श्राद्ध और तर्पण नहीं करते हैं, वे अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध तर्पण कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त जिन पितरों की तिथि ज्ञात नहीं, वे भी श्राद्ध-तर्पण अमावस्या को ही करते हैं। इस दिन सभी पितरों का विसर्जन होता है।
पितृपक्ष की श्राद्ध तालिका
20 सितंबर को पूर्णिमा श्राद्ध
21 सितंबर को प्रतिपदा श्राद्ध
22 सितंबर को द्वितीया श्राद्ध
23 सितंबर को तृतीया श्राद्ध
24 सितंबर को चतुर्थी श्राद्ध
25 सितंबर को पंचमी श्राद्ध
26 सितंबर को षष्ठी श्राद्ध
27 सितंबर को सप्तमी श्राद्ध
28 सितंबर को कोई श्राद्ध नहीं ( कुतप बेला मे तिथि का अभाव होने से श्राद्ध का नहीं होगा।)
29 सितंबर को अष्टमी श्राद्ध
30 सितंबर को नवमी (मातृ नवमी श्राद्ध भी)
01 अक्तूबर को दशमी श्राद्ध
02 अक्तूबर को एकादशी श्राद्ध
03 अक्तूबर को द्वादशी श्राद्ध
04 अक्तूबर को त्रयोदशी श्राद्ध
05 अक्तूबर को चतुर्दशी श्राद्ध (घात चतुर्दशी)
06 अक्तूबर को अमावस्या श्राद्ध और पितृ विसर्जन