युवाओं के प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था इसीलिए 12 जनवरी को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। युवाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले विचार स्वामी विवेकानंद ने दिए थे।
स्वामी विवेकानंद के इस ओजस्वी वाणी से भारत का युवा जागृत हो उठा था। उस वक्त भारत पराधीन था। अंग्रेजों का जुल्म निरंतर बढ़ता जा रहा था। ऐसे में देश के युवाओं को जगाने का काम उनके एक वाक्य ने किया। विवेकानंद भारतीय युवा शक्ति को पहचनाते थे। उनकी यह स्पष्ट धारणा थी कि देश के युवा ही उसका भविष्य होते हैं। आज 21वीं सदी के भारत में जहां भ्रष्टाचार और अपराध का साम्राज्य है। यहां व्याप्त भ्रष्टाचार देश को घुन की तरह खोखला कर रहा है। ऐसे में युवा शक्ति को जगाना और उनको देश के कर्तव्यों के प्रति सचेत करने का काम आज भी यह महामंत्र करता है।
अगर देखा जाए तो भारत विश्व का सबसे बड़ा युवाओं का देश है। यहां पर 25 से 30 वर्ष के युवाओं की जनसंख्या सबसे अधिक है। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि देश की उन्नति सबसे अधिक उस देश के युवा पीढ़ी के कंधों पर होती है अतः युवाओं की अधिक जनसंख्या होना हमारे देश के लिए गर्व की बात है।
स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि भौतिक उन्नति तथा प्रगति अवश्य ही वांछनीय है, परंतु देश जिस अतीत से भविष्य की ओर अग्रसर हो रहा है, उस अतीत को अस्वीकार करना निश्चय ही निर्बुद्धिता का द्योतक है। अतीत की नींव पर ही राष्ट्र का निर्माण करना होगा। युवा वर्ग में यदि अपने विगत इतिहास के प्रति कोई चेतना न हो, तो उनकी दशा प्रवाह में पड़े एक लंगरहीन नाव के समान होगी। ऐसी नाव कभी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँचती। इस महत्वपूर्ण बात को सदैव स्मरण रखना होगा।
वे युवकों में जोश भरते हुए कहा करते थे कि उठो मेरे शेरों! इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो। वे एक बात और कहते थे कि जो तुम सोचते हो वह हो जाओगे। यदि तुम खुद को कमजोर सोचते हो, तुम कमजोर हो जाओगे। अगर खुद को ताकतवर सोचते हो, तुम ताकतवर हो जाओगे। ऐसी ही कुछ प्रेरणाएं हैं जो आज भी युवकों को आंदोलित करती हैं, पथ दिखाती है और जीने की दिशा प्रदत्त करती है। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नया भारत निर्मित करने की बात कर रहे हैं, उसका आधार स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाएं एवं प्रेरणाएं ही हो सकती हैं।
स्वामी विवेकानंद ने युवाओं के लिए कहा है कि मेरी आशा और विश्वास नव युवकों पर है। इसके अलावा इन्होंने युवाओं के लिए और भी विचार प्रस्तुत किए हैं। उनमें प्रमुख विचार निम्नलिखित हैं। युवा वह है जो बुराइयों से लड़ता है दुर्गुणों से दूर रहता है और जिस में होश और जोश दोनों हो। इन्होंने कहा है उठो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो। जो कुछ तुमको शारीरिक बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से कमजोर बनाता है उसे अपने जीवन से निकाल दो। उन्होंने युवाओं से कहा कि अपने चरित्र का निर्माण करो। खड़े होकर अपने भाग्य का निर्माण करो। ब्रह्मांड की सारी शक्तियां तुम्हारे भीतर है उस पर विश्वास करो। यदि सामने कोई समस्या नहीं आती है तो आप समझ जाएं कि आप गलत रास्ते पर हैं।
स्वामी जी ने 11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्वधर्म सम्मेलन में भारत की विजय पताका फहराई और यह सिद्ध किया कि विश्व में अगर कोई देश विश्वगुरु है, तो वह भारत ही है।
स्वामी विवेकानन्द का वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में उनके प्रयासों एवं प्रस्तुति के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिक मूल्यों को सुदृढ़ कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत ‘मेरे अमरीकी भाइयों एवं बहनों’ के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।
स्वामी विवेकानंद और उनके शब्द ज्ञान और जीवन के व्यावहारिक पाठों से इतने समृद्ध थे कि प्रसिद्ध विद्वान और नोबेल पुरस्कार विजेता, रवींद्रनाथ टैगोर ने एक बार कहा था ‘यदि आप भारत को जानना चाहते हैं, तो विवेकानंद का अध्ययन करें. उनमें, सब कुछ सकारात्मक है और कुछ भी नकारात्मक नहीं है।’
एक बार एक विदेशी महिला ने स्वामी विवेकानंद से विवाह करने का निवेदन किया। स्वामी जी ने कहा मैं संन्यासी हूं और आगे भी संन्यासी जीवन ही व्यतीत करूंगा। इस पर महिला ने कहा कि मैं आपके जैसा सुशील, तेजस्वी और गौरवशाली पुत्र चाहती हूं। इस पर स्वामी जी ने कहा कि क्यों न मैं आज और अभी से ही आपका पुत्र बन जाऊं और आप मेरी मां। आपको मेरे स्वरूप में मेरे जैसा पुत्र मिल जाएगा और मुझे मां। यह सुनकर महिला गदगद हो गई और बोली आप तो साक्षात ईश्वर हो, क्योंकि ऐसा सुझाव तो सिर्फ़ ईश्वर ही दे सकता है। स्वामी जी कहा करते थे कि कैसी भी समस्या सामने आए उसका डटकर सामना करो। ऐसा करने पर बहुत सी समस्याओं का समाधान हम अपने स्तर पर ही कर सकते हैं।
स्वामी विवेकानंद ऐसे महापुरुष हैं जिनके विचार आज भी लोगों को प्रेरणा देते हैं। स्वामी विवेकानंद ने मानवता की सेवा और परोपकार के लिए 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इस मिशन का नाम विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रखा था। 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद का निधन हो गया, लेकिन उनके विचार आज भी उन्हें लोगों के बीच जीवित रखे हुए हैं।