भारतीय समय के अनुसार शनिवार 04 दिसंबर 2021 को साल का आखिरी सूर्य ग्रहण सुबह करीब 11 बजे से लगने जा रहा है जो दोपहर 03 बजकर 07 मिनट पर समाप्त हो जाएगा।
हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर यह सूर्य ग्रहण लगेगा। यह एक खग्रास सूर्य ग्रहण होगा। इस सूर्यग्रहण पर आइए जानते हैं सूर्यग्रहण का ज्योतिषीय, धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
◆ सूर्यग्रहण का ज्योतिषीय महत्व
● साल 2021 का अंतिम और दूसरा सूर्य ग्रहण 04 दिसंबर को लगेगा।
● यह खग्रास सूर्य ग्रहण वृश्चिक और ज्येष्ठा नक्षत्र में लगेगा।
● ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहण का लगना अशुभ होता है।
● ग्रहण का प्रभाव सबसे ज्यादा उन राशि के जातकों और नक्षत्र में पैदा हुए लोगों पर रहता है जब सूर्य ग्रहण उस राशि और नक्षत्र में लगता है।
● 04 दिसंबर को लगने वाला सूर्यग्रहण वृश्चिक राशि में लगेगा। वृश्चिक राशि पर मंगल ग्रह का आधिपत्य है और ज्येष्ठा नक्षत्र के स्वामी बुध ग्रह हैं।
● इस कारण से वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म लेने वाला जातकों पर इस ग्रहण का सबसे ज्यादा असर देखने को मिलेगा।
● वैदिक ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को आत्मा जबकि चंद्रमा को मन का कारक माना गया है।
● ग्रहण के दौरान सभी जातकों पर विशेष प्रभाव पड़ता है। हालांकि जिस क्षेत्र में यह ग्रहण होता है वहीं पर ही रहने वाले जातकों पर इसका विशेष प्रभाव पड़ता है, अन्य जगहों पर ग्रहण का विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है।
● 04 दिसंबर 2021 को सूर्य ग्रहण के समय सूर्य, चंद्रमा, बुध और केतु वृश्चिक राशि में रहेंगे, राहु ग्रह वृषभ में, मंगल ग्रह तुला राशि में, शुक्र धनु राशि में और शनि मकर राशि में जबकि गुरु कुंभ राशि में मौजूद रहेंगे।
◆ सूर्य ग्रहण का पौराणिक महत्व
● पौराणिक कथाओं में सूर्य ग्रहण और चंद्रग्रहण की घटना को राहु-केतु के द्वारा ग्रास करने के तौर पर देखा जाता है।
● राहु और केतु दोनों ही छाया ग्रह और राक्षस गण से संबंध रखते हैं।
● कथा के अनुसार जब समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत को भगवान विष्णु मोहिनी का रूप धारण कर सभी देवताओं को पिला रहे तो राहु और केतु इस बात को जान गए कि भगवान विष्णु सिर्फ देवताओं को ही अमृतपान करा रहे हैं। तब दोनों पापी ग्रह चुपके से जाकर देवताओं की पंक्ति में जाकर मोहिन के हाथों से अमृतपान कर लिया था।
● अमृतपान करने के दौरान चंद्रमा और सूर्यदेव ने यह देख लिया था, यह बात जैसे ही भगवान विष्णु को पता चली उन्होंने तुरंत ही अपने सुदर्शन चक्र से राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया। तभी से राहु और केतु समय-समय पर सूर्य और चंद्रमा पर ग्रहण लगाते आ रहे हैं।
◆ सूर्यग्रहण का वैज्ञानिक महत्व
● विज्ञान के नजरिए से सूर्य ग्रहण को एक खगोलीय घटना माना गया है।
● जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी की बीच आ जाता है तब ऐसी स्थिति में सूर्य का प्रकाश धरती पर नहीं पहुँच पाता और चंद्रमा सूर्य को ढक लेता तो इस घटना को सूर्यग्रहण कहते हैं।
सूर्यग्रहण के दौरान दान करें
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक एक ही दिन सूर्य ग्रहण और शनि अमावस्या होने के चलते दान करना बेहद शुभ रहेगा। इस दिन श्रद्धा के मुताबिक दान करने का संकल्प लेना चाहिए। फिर जरुरतमंद लोगों को दान देना चाहिए।
इस दिन तेल, जूते-चप्पल, लकड़ी का पलंग, छाता, काले कपड़े और उड़द की दाल का दान करने से कुंडली में मौजूद शनि दोष खत्म हो जाता है।
जिन लोगों पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है उन्हें सरसों के तेल में अपनी परछाईं देखकर दान करना चाहिए। दरवाजे पर काले घोड़े की नाल लगाएं और कुत्ते को रोटी खिलाएं और शाम को पश्चिम की ओर तेल का दीपक जलाएं
‘ऊं शं शनैश्चराय नम: मंत्र पढ़ते हुए परिक्रमा करने से लाभ होता है।ऐसा योग 148 साल बाद बना है. पिछली बार शनि जयंती के मौके पर सूर्य ग्रहण 26 मई 1873 को लगा था।