पूर्णिमा तिथि दोपहर 2 बजकर 26 मिनट तक रहेगी। उसके बाद मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि लग जायेगी। लिहाजा, 19 नवंबर को स्नान-दान की कार्तिक पूर्णिमा है । इस बार पूर्णिमा तिथि दो दिनों की होने से पूर्णिमा का व्रत तो आज ही किया जा रहा है और शुक्रवार को स्नान-दान किया जा रहा है।
कार्तिक मास का पूरा महीना भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए लिहाज से बेहद खास और कृपा प्रदान करने वाला माना जाता है।कहते हैं इस महीने विष्णुजी के साथ इस महीने मां लक्ष्मी भी विधिविधान से पूजा की जाए तो मां लक्ष्मी आपके घर में वास करती हैं। इस साल कार्तिक पूर्णिमा शुक्रवार को पड़ने से इस दिन का महत्व और भी ज्यादा बताया जा रहा है।शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए सिद्ध माना जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त
• पूर्णिमा तिथि प्रारंभ- 18 नवंबर (गुरुवार) दोपहर 11 बजकर 55 मिनट से
• पूर्णिमा तिथि समाप्त- 19 नवंबर (शुक्रवार) दोपहर 02 बजकर 25 मिनट तक
धार्मिक मान्यता के अनुसार
धन की देवी मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर आपके घर में प्रवेश कर धन वैभव में वृद्धि करें तो आपको लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए ये सभी उपाय करने ज़रूरी हैं।
● कार्तिक पूर्णिमा के दिन सर्वप्रथम सुबह घर की साफ-सफाई करके पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करें।
● कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुबह स्नान करने के बाद घर के मुख्य द्वार पर हल्दी से दोनों ओर स्वास्तिक ज़रूर बनाएं और इस पर अक्षत भी छींटें।
●कार्तिक पूर्णिमा के दिन व्रत रखना बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को हजार अश्वमेध और सौ राजसूय यज्ञ का फल मिलता है।
● कार्तिक पूर्णिमा के दिन मुख्य द्वार पर आम के पत्तों का या फिर अशोक के पत्तों का तोरण जरूर लगाएं।
● कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र गंगा नदी में दीपदान करना बहुत शुभ माना जाता है। यदि आपके शहर में गंगा का घाट नहीं है तो आप किसी अन्य पवित्र घाट पर जाकर दीप जला सकते हैं।
●कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी की पूजा करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। शाम के वक्त तुलसी की जड़ में घी का दीपक जलाएं और माता तुलसी को श्रृंगार का सारा सामान भेंट करें।चढ़ाया गया सारा सामान बाद में किसी सुहागिन महिला को दे दें।
●तुलसी नमन मंत्र
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः।नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
●कार्तिक पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी को उनक प्रिय वस्तुएं जैसे मखाना, सिंघारा, नारियल, सफेद बर्फी और अक्षत जरूर अर्पित करें। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा में 5 सफेद कौड़ियां जरूर रखें।
● कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध करने के कारण इस दिन शिवजी की पूजा करना भी बेहद खास और जरूरी माना जाता है। इस दिन भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाएं और पंचामृत से स्नान करवाएं तो आपको शिवजी की कृपा अवश्य मिलेगी।
देव दिवाली की कथा
देव दीपावली की कथा महर्षि विश्वामित्र से जुड़ी है। मान्यता है कि एक बार विश्वामित्र जी ने देवताओं की सत्ता को चुनौती दे दी उन्होंने अपने तप के बल से त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया। यह देखकर देवता अचंभित रह गए।विश्वामित्र जी ने ऐसा करके उनको एक प्रकार से चुनौती दे दी थी। इस पर देवता त्रिशंकु को वापस पृथ्वी पर भेजने लगे, जिसे विश्वामित्र ने अपना अपमान समझा। उनको यह हार स्वीकार नहीं थी।
गुरु नानक जयंती से दिन बनता है और खास
ऐसी मान्यता है कि कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन ही सिख धर्म के पहले गुरु यानी गुरु नानकदेव का जन्म हुआ था। इस वजह से भी हिंदू और सिख धर्म के अनुयायी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पर्व प्रकाश पर्व या प्रकाश उत्सव के रूप मनाते हैं। इस अवसर पर गुरुद्वारों में अरदास की जाती है और बहुत बड़े स्तर पर जगह-जगह पर लंगर किया जाता है।
कार्तिकेय भगवान की पूजा का विशेष महत्व
पूरे साल भर में से कार्तिक पूर्णिमा को ही भगवान कार्तिकेय जी के ग्वालियर स्थित मन्दिर के कपाट खुलते हैं और उनकी पूजा- अर्चना की जाती है । बाकी साल भर मन्दिर के कपाट बंद रहते हैं ।
पौराणिक तथ्यों के आधार पर एक बार कार्तिकेय जी के द्वारा उनके दर्शन न किये जाने के श्राप से परेशान मां पार्वती और शिवजी ने कार्तिकेय जी से प्रार्थना की और कहा कि वर्षभर में कोई एक दिन तो होगा, जब आपका दर्शन-पूजन किया जा सके। तब भगवान कार्तिकेय ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने दर्शन की बात कही इसीलिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान कार्तिकेय जी के दर्शन-पूजन का इतना महत्व है।
कार्तिक पूर्णिमा कथा
पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस था। उसके तीन पुत्र थे – तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिक ने तारकासुर का वध किया। अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए। तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की। ब्रह्मजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो। तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा।
तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके। एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।
तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया। तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए। इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।
इस दिव्य रथ की हर एक चीज़ देवताओं से बनीं। चंद्रमा और सूर्य से पहिए बने। इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चाल घोड़े बनें। हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बनें। भगवान शिव खुद बाण बनें और बाण की नोक बने अग्निदेव। इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव।