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कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवोत्थान या देवउठनी एकादशी कहते हैं। इसे देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।कहते हैं कि इस दिन चार माह की निद्रा के बाद भगवान विष्णु जागते हैं और सृष्टि का संचालन करते हैं और जिसके बाद से मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं।इतना ही नहीं इस दिन तुलसी और शालीग्राम विवाह किया जाता है। इस साल देवोत्थान एकादशी 14 नवंबर 2021 रविवार को है।
देवोत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है।मान्यता है कि एकादशी व्रत रखने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। भगवान श्रीहरि की कृपा से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।वहीं एकादशी व्रत को लेकर मान्यता है कि साल के सभी 24 एकादशी व्रत करने पर लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
देवोत्थान एकादशी की पूजा विधि
गन्ने का मंडप बनाने के बाद बीच में चौक बना लें इसके बाद चौक के मध्य में चाहें तो भगवान विष्णु का चित्र या मूर्ति रख सकते हैं। चौक के साथ ही भगवान के चरण चिह्न बनाए जाते हैं जिसको कि ढ़क दिया जाता है इसके बाद भगवान को गन्ना, सिंघाडा और फल-मिठाई समर्पित किए जाते हैं।
घी का एक दीपक जलाया जाता है जो कि रातभर जलता रहता है। भोर में भगवान के चरणों की विधिवत पूजा की जाती है फिर चरणों को स्पर्श करके उनको जगाया जाता है। इस समय शंख-घंटा-और कीर्तन की आवाज की जाती है इसके बाद व्रत-उपवास की कथा सुनी जाती है। जिसके बाद सभी मंगल कार्य विधिवत शुरु किए जा सकते हैं।
देवोत्थान एकादशी पर न करें ये कार्य
● एकादशी के दिन चावल खाना पूरी तरह वर्जित माना गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, एकादशी के दिन चावल खान से प्राणी रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म पाता है।
● पौराणिक कथा के अनुसार, माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने शरीर त्याग कर दिया और उनका अंश पृथ्वी में समा गया। चावल और जौ के रूप में महर्षि मेधा उत्पन्न हुए इसलिए चावल और जौ को जीव माना जाता है।
● जिस दिन महर्षि मेधा अंश पृथ्वी में समाया था उस दिन एकादशी तिथि थी इसलिए इस दिन चावल खाने से परहेज करना चाहिए।
● इसके अतिरिक्त मांसाहार या तामसिक गुणों वाली चीजों का सेवन करने से भी बचना चाहिए।
● जिन लोगों ने एकादशी का व्रत रखा है, वे लकड़ी के दातून या पेस्ट से दांत साफ न करें क्योंकि इस दिन किसी पेड़-पौधों के पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए।
● एकादशी के दिन तुलसी तोड़ने से बचें, क्योंकि तुलसी विष्णु की प्रिया हैं।
● भोग लगाने के लिए पहले से तुलसी तोड़ लेनी चाहिए लेकिन अर्पित की गई तुलसी स्वयं ग्रहण न करें।
● व्रत रखने वाले भूल से भी गोभी, गाजर, शलजम, पालक, कुलफा का साग आदि का सेवन नहीं करें।
● मान्यता है कि एकादशी का लाभ पाने के लिए व्यक्ति को इस दिन कठोर शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए साथ ही लड़ाई-झगड़े से भी बचना चाहिए।
● इस दिन घर में भूलकर भी कलह न करें।
देवोत्थान एकादशी पर ज़रूर करें ये कार्य
● कहा जाता है कि एकादशी के पति-पत्नी को ब्रह्नाचार्य का पालन करना चाहिए।
● एकादशी के दिन संभव हो तो गंगा स्नान करना चाहिए स्नानोपरांत दान करना उत्तम माना जाता है।
● विवाह संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए एकादशी के दिन केसर, केला या हल्दी का दान करना चाहिए।
● एकादशी का उपवास रखने से धन, मान-सम्मान और संतान सुख के साथ मनोवांछित फल की प्राप्ति होने की मान्यता है।
● कहा जाता है कि एकादशी का व्रत रखने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
देवोत्थान एकादशी का महत्त्व
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! मैंने कार्तिक कृष्ण एकादशी अर्थात रमा एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप कृपा करके मुझे कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइये। इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसके व्रत का क्या विधान है? इसकी विधि क्या है? इसका व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है? कृपया यह सब विधानपूर्वक कहिए।
भगवान श्रीकृष्ण बोले: कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष मे तुलसी विवाह के दिन आने वाली इस एकादशी को विष्णु प्रबोधिनी एकादशी, देव-प्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थान, देव उथव एकादशी, देवउठनी एकादशी, देवोत्थान, कार्तिक शुक्ल एकादशी तथा प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। यह बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली है, इसका माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूं, ध्यानपूर्वक सुनो।
देवोत्थान एकादशी व्रत कथा
एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला: महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें। तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है, रख लेते हैं। किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा।
उस व्यक्ति ने उस समय हाँ कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा: महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊंगा, मुझे अन्न दे दो।
राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, पर वह अन्न छोड़ने को तैयार नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। वह नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा: आओ भगवान! भोजन तैयार है।
उसके बुलाने पर पीताम्बर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजनादि करके भगवान अंतर्धान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया।
पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता।
इस दिन करें भगवान विष्णु चालीसा का पाठ
मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के दुखों का नाश होता है और मृत्यु के बाद उसे बैकुंठ की प्राप्ति होती है इसके साथ ही श्री हरि को पीले रंग के फूल और वस्त्र समर्पित करने चाहिए। ऐसा करने से श्री हरि विष्णु आपके दुखों को दूर करते हैं और सुख समृद्धि का वर प्रदान करते हैं।
श्री विष्णु चालीसा
दोहा
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय।
चौपाई
नमो विष्णु भगवान खरारी।
कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी।
त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत।
सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥
तन पर पीतांबर अति सोहत।
बैजन्ती माला मन मोहत॥
शंख चक्र कर गदा बिराजे।
देखत दैत्य असुर दल भाजे॥
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे।
काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥
संतभक्त सज्जन मनरंजन।
दनुज असुर दुष्टन दल गंजन॥
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन।
दोष मिटाय करत जन सज्जन॥
पाप काट भव सिंधु उतारण।
कष्ट नाशकर भक्त उबारण॥
करत अनेक रूप प्रभु धारण।
केवल आप भक्ति के कारण॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा।
तब तुम रूप राम का धारा॥
भार उतार असुर दल मारा।
रावण आदिक को संहारा॥
आप वराह रूप बनाया।
हरण्याक्ष को मार गिराया॥
धर मत्स्य तन सिंधु बनाया।
चौदह रतनन को निकलाया॥
अमिलख असुरन द्वंद मचाया।
रूप मोहनी आप दिखाया॥
देवन को अमृत पान कराया।
असुरन को छवि से बहलाया॥
कूर्म रूप धर सिंधु मझाया।
मंद्राचल गिरि तुरत उठाया॥
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया।
भस्मासुर को रूप दिखाया॥
वेदन को जब असुर डुबाया।
कर प्रबंध उन्हें ढूंढवाया॥
मोहित बनकर खलहि नचाया।
उसही कर से भस्म कराया॥
असुर जलंधर अति बलदाई।
शंकर से उन कीन्ह लडाई॥
हार पार शिव सकल बनाई।
कीन सती से छल खल जाई॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी।
बतलाई सब विपत कहानी॥
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी।
वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥
देखत तीन दनुज शैतानी।
वृन्दा आय तुम्हें लपटानी॥
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी।
हना असुर उर शिव शैतानी॥
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे।
हिरणाकुश आदिक खल मारे॥
गणिका और अजामिल तारे।
बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥
हरहु सकल संताप हमारे।
कृपा करहु हरि सिरजन हारे॥
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे।
दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥
चहत आपका सेवक दर्शन।
करहु दया अपनी मधुसूदन॥
जानूं नहीं योग्य जप पूजन।
होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥
शीलदया सन्तोष सुलक्षण।
विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण॥
करहुं आपका किस विधि पूजन।
कुमति विलोक होत दुख भीषण॥
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण।
कौन भांति मैं करहु समर्पण॥
सुर मुनि करत सदा सेवकाई।
हर्षित रहत परम गति पाई॥
दीन दुखिन पर सदा सहाई।
निज जन जान लेव अपनाई॥
पाप दोष संताप नशाओ।
भव-बंधन से मुक्त कराओ॥
सुख संपत्ति दे सुख उपजाओ।
निज चरनन का दास बनाओ॥
निगम सदा ये विनय सुनावै।
पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥
इस दिन माता तुलसी की खास पूजा होती है, जिसके बाद शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है।आइए जानते हैं
देवोत्थान एकादशी की पूजा विधि और मंत्रों के जाप का तरीका
● घर में तुलसी के पौधे के चारों तरफ एक स्तंभ तैयार करें।फिर इन स्तंभों पर एक तोरण अच्छे से सजाएं।
● आकर्षक रंगोली से अष्टदल कमल तैयार करें। शंख, चक्र और गाय के पद चिह्न बनाएं।
● तुलसी के साथ आंवले का गमला स्थापित करें। तुलसी का पंचोपचार करते हुए सर्वांग पूजा करें।
● दशाक्षरी मंत्र से माता तुलसी का आवाहन करें।दशाक्षरी मंत्र, श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वृन्दावन्यै स्वाहा।
● घी का दीप और धूप जलाकर माता को दिखाएं और सिंदूर, रोली, चंदन और नैवेद्य अर्पित करें।
● तुलसी मां को वस्त्र अंलकार से सुशोभित करें । लक्ष्मी अष्टोत्र, दामोदर अष्टोत्र पढ़कर दीपदान करें।
● एकादशी पर श्रीहरि को तुलसी चढ़ाने का फल दस हज़ार गोदान है।
● जिन दंपत्तियों के यहाँ संतान न हो वो तुलसी नामाष्टक पढ़ें। तुलसी नामाष्टक पाठ से शीघ्र विवाह होता है, संबंध करीब आते हैं।
देवोत्थान एकादशी पर करें 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा कर दिव्य मंत्र का जाप करें
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः । नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये ।।
ॐ श्री तुलस्यै विद्महे। विष्णु प्रियायै धीमहि। तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।।
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी। धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्। तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।