अहोई अष्टमी का यह व्रत संतान की लंबी आयु के लिए किया जाता है। इस दिन माता पार्वती के अहोई स्वरूप की आराधना की जाती है।
अहोई अष्टमी का त्योहार संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। इस दिन माताएं पूरे दिन निर्जल उपवास रखती हैं फिर शाम को तारे निकलने के बाद व्रत का पारण करती हैं। हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है।इस बार अहोई अष्टमी का व्रत 28 अक्टूबर 2021 को बृहस्पतिवार के दिन किया जाएगा।
अहोई अष्टमी पूजा का मुहूर्त:
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त – 05:39 PM से 06:56 PM
अवधि: 1 घण्टा 17 मिनट
तारों को देखने के लिए शाम का समय: 06:03 PM
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय: 11:29 PM
अहोई अष्टमी की आवश्यक सामग्री
•अहोई माता मूर्ति,माला, दीपक, करवा,
•अक्षत, पानी का कलश, पूजा रोली, •दूब, कलावा, श्रृंगार का सामान, •श्रीफल, सात्विक भोजन, बयाना, •चावल की कोटरी, सिंघाड़े, मूली,
•फल, खीर, दूध व भात, वस्त्र,
•चौदह पूरी और आठ पुए आदि।
अहोई अष्टमी व्रत विधि
अहोई अष्टमी के दिन माताएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें फिर अहोई अष्टमी व्रत रखने का संकल्प लें।अहोई माता की पूजा के लिए दीवार पर गेरू से माता अहोई का चित्र बनाएं।साथ ही सेह और उनके सात पुत्रों का चित्र बनाएं।आप चाहें तो उनका रेडिमेड चित्र या प्रतिमा भी लगा सकते हैं।अब इस पर जल से भरा हुआ कलश रखें।अब रोली, चावल और फूलों से माता अहोई की पूजा करें। अब अहोई माता को मीठे पुए या आटे के हलवे का भोग लगाएं।कलश पर स्वास्तिक बनाकर हाथ में गेंहू के सात दाने लें।इसके बाद कलश में जल भरकर माताएं अहोई अष्टमी कथा का श्रवण करें। माता अहोई को हलवा पूरी या फिर किसी मिठाई का भोग लगाएं। पूजा के बाद माता की आरती के बाद मंत्रों का उच्चारण करें। रात में तारों का अर्घ्य देकर अन्न ग्रहण करें।
अहोई अष्टमी की व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार दिवाली के मौके पर घर को लीपने के लिए एक साहुकार की सात बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो उनकी ननद भी उनके साथ चली आई। साहुकार की बेटी जिस जगह मिट्टी खोद रही थी। उसी जगह स्याहु अपने बच्चों के साथ रहती थी। मिट्टी खोदते वक्त लड़की की खुरपी से स्याहू का एक बच्चा मर गया इसलिए जब भी साहुकार की बेटी को बच्चे होते थे वो 7 दिन के भीतर मर जाते थे। एक-एक कर सात बच्चों की मौत के बाद लड़की ने जब पंडित को बुलाया और इसका कारण पूछा तो उसे पता चला कि अनजाने में उससे जो पाप हुआ उसका ये नतीजा है। पंडित ने लड़की से अहोई माता की पूजा करने को कहा इसके बाद कार्तिक कृष्ण की अष्टमी तिथि के दिन उसने माता का व्रत रखा और पूजा की। बाद में माता अहोई ने सभी मृत संतानों को जीवित कर दिया। इस तरह से संतान की लंबी आयु और प्राप्ति के लिए इस व्रत को किया जाने लगा।
पूजा के दौरान बच्चों को बैठाएं अपने साथ
अहोई अष्टमी का व्रत बच्चों के लिए किया जाता है और मान्यता है कि पूजा के समय बच्चों का साथ जरूर बिठाना चाहिए। चूंकि इस व्रत को संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है, इसलिए पूजा के उपरांत माता को भोग लगाने के बाद प्रसाद अपने बच्चों को जरूर दें।
संतान प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी के दिन करें ये उपाय
अहोई अष्टमी के दिन माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा करें। साथ ही उन्हें दूध और भात का भोग लगाएं। इस दौरान आधा भोजन गाय के लिए भी निकाल लें। फिर शाम होने पर पीपल के पेड़ के नीचे दीपक लगाएं और उसकी परिक्रमा करते हुए संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें। ऐसा करने से माता अहोई प्रसन्न होती हैं।
अहोई से लेकर दिवाली तक पहनते हैं स्याहु की माला
अहोई अष्टमी की पूजा के लिए चांदी की अहोई बनाई जाती है, जिसे स्याहु भी कहते हैं। पूजा के समय इस माला की रोली, अक्षत से इसकी पूजा की जाती है, इसके बाद एक कलावा लेकर उसमे स्याहु का लॉकेट और चांदी के दाने डालकर माला बनाई जाती है।व्रत करने वाली माताएं इस माला को अपने गले में अहोई से लेकर दिवाली तक धारण करती हैं।
अहोई पहनने का सही तरीका
अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता की पूजा करें और करवा में जल भरकर रखें। अहोई माता की कथा सुनें. स्याहु माता के लॉकेट की पूजा करें उसके बाद संतान को पास में बैठाकर माला बनाएं। इस मौले को मौली के धागों की मदद से तैयार करें। माला बनाने के लिए किसी प्रकार की सूई या पिन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। संतान का तिलक करें और माला धारण करें।