सकट चौथ का व्रत माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन रखा जाता है। इस साल सकट चौथ 21 जनवरी के दिन मनाई जाएगी।शास्त्रों के अनुसार सकट चौथ को संकटा चौथ के नाम से भी जाना जाता है।
सकट चौथ के दिन भगवान श्री गणेश की पूजा और व्रत आदि किया जाता है। कहते हैं कि सकट चौथ का व्रत रखने से संतान और परिवार सुरक्षित रहता है। इतना ही नहीं, सकट चौथ के व्रत से जीवन में आ रही सभी समस्याओं से छुटकारा मिलता है।देश के अलग-अलग हिस्सों या राज्यों में सकट चौथ को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। लेकिन इनका एक ही उद्देश्य है। भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करना।
◆ संकष्टी चतुर्थी पूजा शुभ मुहूर्त
हिंदी पंचांग के अनुसार,
● संकष्टी चतुर्थी 21 जनवरी को प्रात:काल 8 बजकर 51 मिनट से शूरु होकर 22 जनवरी को 9 बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगी।
● ज्योतिषों की मानें तो इस वर्ष सकट का व्रत सौभाग्य योग में शुरू हो रहा है, जो 21 जनवरी को 03:05 तक रहेगा।
●इसके बाद शोभन योग लग जाएगा। ये दोनों ही योग गणेश पूजन के लिए अति शुभ है।
● गणेश पूजन दिन में करने का विधान है। अत: सौभाग्य योग में पूजा करना शुभ रहेगा।
◆ चंद्र दर्शन का शुभ मुहूर्त
सनातन धर्म में सकट चौथ को चंद्र दर्शन का विधान है।
● सकट चौथ की रात चंद्रमा का उदय 09 बजकर 05 मिनट पर होगा।
● सकट चौथ रखने वाली महिलाएं रात्रि में 9 बजकर 5 मिनट पर चंद्र दर्शन कर सकती हैं। इस समय चंद्रमा के दर्शन करते हुए जल अर्पित करें।
◆ संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म बेला में उठें। इसके बाद नित्य कर्म से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। अब सर्वप्रथम आमचन कर भगवान गणेश के निम्मित व्रत संकल्प लें और भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। इसके पश्चात, भगवान गणेश जी की षोडशोपचार पूजा फल, फूल, धूप-दीप, दूर्वा, चंदन, तंदुल आदि से करें। भगवान गणेश जी को पीला पुष्प और मोदक अति प्रिय है। अतः उन्हें पीले पुष्प और मोदक अवश्य भेंट करें। अंत में आरती और प्रदक्षिणा कर उनसे सुख, समृद्धि और शांति की कामना करें। दिन भर उपवास रखें। शाम में आरती-अर्चना के बाद फलाहार करें।
धार्मिक दृष्टि से सकट चौथ के दिन गणेश जी की पूजा के बाद उन्हें तिल से बने खाद्य पदार्थों का भोग लगाया जाता है, इसी कारण इसे तिलकुटा चौथ, तिलकुट चतुर्थी और तिल चौथ आदि के नाम से भी जानते हैं।
ग्रंथों के अनुसार सभी संकष्टी चतुर्थी व्रतों में सकट चौथ या संकटा चौथ सबसे महत्वपूर्ण है। इस दिन व्रत रखने से सुख, सौभाग्य की प्राप्ति होती है और इस दिन व्रत रखने से सभी सकंटों का नाश होता है इसलिए इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। कहते हैं कि सकट चौथ का व्रत रखने से गणेश जी प्रसन्न होते हैं और वे बिना किसी बाधा के लोगों के सभी कार्य सफल करने का आशीर्वाद देते हैं।
सकट चौथ पहली व्रत कथा (Sakat Chauth Vrat katha)
भगवान शिव और गणेश जी
हिंदू शास्त्र के अनुसार, माघ माह में आने वाली सकट चौथ का विशेष महत्व है। इसके पीछे की पौराणिक कथा विघ्नहर्ता गणेश जी से जुड़ी है। इस दिन गणेश जी पर बड़ा संकट आकर टला गया था, इसलिए इस दिन का नाम सकट चौथ पड़ा है। कथा के अनुसार माता पार्वती एक दिन स्नान करने के लिए जा रही थीं उन्होंने अपने पुत्र बालक गणेश को दरवाजे के बाहर पहरा देने का आदेश दिया और बोलीं कि जब तक वे स्नान करके ना लौटें किसी को भी अंदर नहीं आने दें।
गणेश जी मां की आज्ञा का पालन करते हुए बाहर खड़े होकर पहरा देने लगे। ठीक उसी वक्त भगवान शिव माता पार्वती से मिलने पहुंचे। गणेश जी ने तुरंत ही भगवान शिव को दरवाज़े के बाहर रोक दिया। ये देख शिव जी को गुस्सा आ गया और उन्होंने त्रिशूल से वार कर बालक गणेश की गर्दन धड़ से अलग कर दी। इधर पार्वती जी ने बाहर से आ रही आवाज़ सुनी तो वह भागती हुईं बाहर आईं। पुत्र गणेश की कटी हुई गर्दन देख घबरा गईं और शिव जी से अपने बेटे के प्राण वापस लाने की गुहार लगाने लगी।
शिव जी ने माता पार्वती की बात मानते हुए गणेश जी को जीवन दान तो दे दिया लेकिन गणेश जी की गर्दन की जगह एक हाथी के बच्चे का सिर लगानी पड़ी। उसी दिन से सभी महिलाएं अपने बच्चों की सलामती के लिए गणेश चतुर्थी का व्रत रखती हैं।
सकट चौथ की दूसरी कथा (Sakat Chauth Vrat katha )
कुम्हार
सकट चौथ की दूसरी कथा मिट्टी के बर्तन बनाने वाले एक कुम्हार से जुड़ी हुई है। कहानी के अनुसार एक राज्य में एक कुम्हार रहता था। एक दिन वह मिट्टी के बर्तन पकाने के लिए आवा ( मिट्टी के बर्तन पकाने के लिए आग जलाना ) लगा रहा था। उसने आवा तो लगा दिया लेकिन उसमें मिट्टी के बर्तन पके नहीं। ये देखकर कुम्हार परेशान हो गया और वह राजा के पास गया और सारी बात बताई। राजा ने राज्य के राज पंडित को बुलाकर कुछ उपाय सुझाने को बोला, तब राज पंडित ने कहा कि, यदि हर दिन गांव के एक-एक घर से एक-एक बच्चे की बलि दी जाए तो रोज आवा पकेगा।
राजा ने आज्ञा दी की पूरे नगर से हर दिन एक बच्चे की बलि दी जाए। कई दिनों तक ऐसा चलता रहा और फिर एक बुढ़िया के घर की बारी आई लेकिन उसके बुढ़ापे का एकमात्र सहारा उसका अकेला बेटा अगर बलि चढ़ जाएगा तो बुढ़िया का क्या होगा। ये सोच-सोच वह परेशान हो गई। उसने सकट की सुपारी और दूब देकर बेटे से बोला, ‘जा बेटा, सकट माता तुम्हारी रक्षा करेंगी और खुद सकट माता का स्मरण कर उनसे अपने बेटे की सलामती की कामना करने लगी।
अगली सुबह कुम्हार ने देखा की आवा भी पक गया और बालक भी पूरी तरह से सुरक्षित है और फिर सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक जिनकी बलि दी गई थी, वह सभी भी जी उठें, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उसी दिन से सकट चौथ के दिन मां अपने बेटे की लंबी उम्र के लिए भगवान गणेश की पूजा और व्रत करती हैं।
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