कृषि बिल के ख़िलाफ़ दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के मद्देनजर सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें वायरल हो रही हैं जिनमें दावा किया जा रहा है कि किसान आंदोलन की आड़ में पंजाबी भाषा को प्रमोट करने के उद्देश्य से हिंदी भाषा को निशाना बनाया जा रहा है।
आपको बता दें जो फ़ोटो शोसल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं दरअसल वो फ़ोटो सड़कों,हाइवे पर जगह और दूरी बताने के लिए इस्तेमाल होने वाले हरे रंग के साइन बोर्ड हैं जिनको पंजाबी छोड़कर अन्य भाषाओं में लिखी सूचनाओं पर कालिख लगाते हुए देखा जा सकता है।
सोशल मीडिया यूजर्स इन तस्वीरों को शेयर करते हुए पोस्ट में लिख रहे हैं, जैसे-जैसे दिन बीत रहे है वैसे-वैसे तथाकथित किसान आंदोलन का असली चेहरा भी सबके सामने आ रहा है। टावर तोड़ने के बाद अब पंजाब में हिंदी नही चलेगी”।
एक यूजर ने लिखा,””रिलायंस जियो के टॉवर तोड़ने के बाद हिन्दी नहीं चलेगी”।गौरतलब है कि इससे पूर्व पंजाब से ऐसी खबरें आई थीं कि किसान आंदोलन के दौरान वहाँ मोबाइल टावरों को नुकसान पहुँचाया जा रहा है।
फ़िलहाल न्यूज़. पी. आर. टुडे की टीम ने जब इस पोस्ट का फैक्ट चेक़ किया तो पाया कि पोस्ट में किया जा रहा दावा भ्रामक है।साइन बोर्ड पर कालिख़ पोतते लोग किसान आंदोलन से जुड़े नहीं है। दरअसल ये फोटो अक्टूबर 2017 की हैं जब पंजाब के कुछ हिस्सों में उग्र सिख संगठनों ने एक विरोध-प्रदर्शन के दौरान साइन बोर्ड पर कालिख पोत दी थी। उस वक़्त संगठनों की मांग थी कि साइन बोर्ड पर पंजाबी भाषा को प्राथमिकता मिले और बोर्ड पर जगह के नाम को पंजाबी में सबसे ऊपर लिखा जाए।
क्या है फ़ोटो की सच्चाई?
फ़ोटो को रिवर्स सर्च करने पर हमें एक आर्टिकल में मिला जो अक्टूबर 2017 में प्रकाशित हुआ था साथ ही हमें इंडिया टीवी’ की एक रिपोर्ट मिली जिसमें इन फ़ोटो के बारे में पूरी जानकरी दी गई थी।
25 अक्टूबर 2017 को प्रकाशित हुई इस खबर में बताया गया है कि ये तस्वीरें बठिंडा- फरीदकोट हाइवे की हैं। यहाँ कुछ सिख संगठनों ने पंजाबी भाषा को महत्व देने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया था और हरे साइन बोर्ड पर अंग्रेजी और हिंदी में लिखे जगहों के नाम को कालिख से पोत दिया था। इस मामले पर ‘इंडिया टीवी’ के यूट्यूब अकाउंट पर एक वीडियो भी मौजूद है। दरअसल लोगों का कहना था कि पंजाब में साइन बोर्ड पर जगहों का नाम पंजाबी भाषा में हिंदी और अंग्रेजी के ऊपर लिखा जाए।
जिस वक्त ये घटना घटित हुई उस वक़्त सरकारी संम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में 150 लोगों पर मामला दर्ज हुआ था उस समय ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ ने भी इस विरोध-प्रदर्शन पर खबर प्रकाशित की थी।
एक और रिसर्च में पता चला कि उस वक़्त ‘द ट्रिब्यून’ ने जो कवरेज़ की उसमें कुछ प्रदर्शनकारियों का ये भी कहना था कि साइन बोर्ड पर बठिंडा और फरीदकोट में आने वाले गावों के नाम का बेतुका हिंदी और अंग्रेजी अनुवाद लिखा होता है इससे यात्रियों को परेशानी होती है और पंजाबी भाषा का भी अपमान होता है। अक्टूबर 2017 में कुछ अन्य वेबसाइट और ब्लॉग ने भी इन तस्वीरों का इस्तेमाल किया था।
NPR टुडे फैक्ट चेक टीम
सोशल मीडिया यूजर्स का दावा
पंजाब में किसान आंदोलन के दौरान साइन बोर्ड पर कालिख पोत कर हिंदी भाषा का विरोध किया जा रहा है।
NPR टुडे फैक्ट चेक़ टीम का निष्कर्ष
शोसल मीडिया पर वायरल हो रही फ़ोटो जिसमें कुछ लोगों को सड़क किनारे लगे हरे साइन बोर्ड पर लिखी हिन्दी पर कालिख पोतते दिखाया गया है अक्टूबर 2017 की हैं जब पंजाब के कुछ हिस्सों में उग्र सिख संगठनों ने एक विरोध-प्रदर्शन के दौरान साइन बोर्ड पर कालिख पोत दी थी।संगठनों की मांग थी कि साइन बोर्ड पर जगह के नाम को पंजाबी भाषा में सबसे ऊपर लिखा जाए।
इसलिए यहाँ इस बात की पुष्टि हो जाती है कि ये तस्वीरें तीन साल से ज्यादा पुरानी हैं और इसका मौजूदा किसान आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं है।