उत्तर प्रदेश के चुनाव में पुरानी पेंशन बहाली और नई पेंशन स्कीम पर जीत-हार का गेम सेट हो रहा है। सपा पुरानी पेंशन लागू करने का ट्रंप कार्ड खेल रही है। बीजेपी केंद्र की नई पेंशन स्कीम में फंस गई है।
अखिलेश यादव हर सभा में ये दोहरा रहे हैं, “सपा पुरानी पेंशन को फिर से लागू करेगी। हमने कर्मचारियों और इकोनॉमिक एक्सपर्ट्स से बात कर ली है। फंड बनाकर जरूरी धन का बंदोबस्त कर लिया जाएगा।”
प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ डिफेंसिव मोड में हैं रैलियों में इस पर योगी सिर्फ यह कह पा रहे हैं,कि “2004 में खुद मुलायम सिंह ने NPS लागू की। फिर 2012 से 2017 तक अखिलेश CM रहे। तब भी इन्होंने कुछ नहीं किया। अब लोगों को पुरानी पेंशन के नाम पर गुमराह कर रहे हैं”।ये दोनों बातें पूरी यूपी का माहौल बदलते दिख रहे हैं। दरअसल, कर्मचारी पुरानी पेंशन चाहते हैं। इसलिए BJP बैकफुट पर नजर आ रही है।
NPS पर अटक गई बीजेपी
2004 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। घोषणा हुई कि 31 दिसंबर 2004 के बाद जिनकी भी ज्वॉइनिंग होगी। उन्हें रिटायरमेंट के बाद पेंशन नहीं मिलेगी। बल्कि उनके लिए (NPS) , नेशनल पेंशन सिस्टम लागू होगा। उसी साल लोकसभा का चुनाव था। चुनाव में इसका जोरदार प्रचार हुआ। फायदे गिनाए गए लेकिन रिजल्ट आया तो BJP हार गई। इधर अटल की सरकार तो चली गई लेकिन NPS रह गई।
असल में तब NPS को राज्यों को थोपा नहीं गया था फिर भी अप्रैल 2005 को तब के यूपी CM मुलायम सिंह ने भी इसे अपना लिया। यही स्कीम अभी तक यूपी में चल रही है।अब अखिलेश का दावा है कि जब मुलायम ने पुरानी पेंशन स्कीम के बदले NPS को लागू किया तब 6 जरूरी चीजें बदल गईं थी। अखिलेश उसी बदली हुई चीजों को पहले जैसा करना चाहते हैं।
25 लाख से अधिक सरकारी कर्मचारी और पेंशनर्स का झुकाव OPS में
यूपी में इस वक्त 28 लाख सरकारी कर्मचारी और पेंशनर्स हैं। ये सिर्फ 28 लाख वोट नहीं हैं बल्कि 28 लाख परिवार हैं। इतना ही नहीं, ये सरकारी कर्मचारी दूसरे वोटर्स को प्रभावित भी करते हैं। अगर ये किसी एक पार्टी की ओर झुक गए तो सूबे का नतीजा बदल सकता है।
फ़िलहाल शिक्षकों का मानना है कि जो कर्मचारी 2005 के बाद भर्ती हुए वे अभी 10 साल बाद रिटायर होने शुरू होंगे। इसलिए पुरानी पेंशन लागू करने से सरकार के खजाने पर बड़ा बोझ नहीं आएगा।” शिक्षक गलियारे में यह चर्चा बनी रहती है कि यदि “पुरानी पेंशन व्यवस्था नुकसानदेय होती तो बंगाल और केरल क्यों आज भी उसे चलाते? फिर पुरानी व्यवस्था को लागू करने के लिए केंद्र सरकार की अनुमति की भी जरूरत नहीं है। राज्य सरकार खुद ही फैसला ले सकती है।”
अर्थशास्त्रियों व जानकारों का मानना हैं, “इस वक्त पुरानी पेंशन को लाने में पैसे का बड़ा नुकसान हो जाएगा क्योंकि सरकार ने कर्मचारियों का पेंशन फंड प्राइवेट कंपनियों में निवेश कर रखा है।
अगर उस रकम को मेच्योरिटी से पहले वापस लिया तो कंपनियां अपनी शर्तों पर मनचाही कटौती करेंगी। इससे सरकार को भारी नुकसान होगा।इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि पुरानी पेंशन को लागू करने में कोई कानूनी पेंच या सरकार का अड़ंगा नहीं है। लेकिन फंड पर टेक्निकल लोचा आ सकता है।
पुरानी पेंशन अगर गेमचेंजर है तो योगी क्यों नहीं अपना रहे?
23 जुलाई 2019 को योगी सरकार के वित्त मंत्री राजेश अग्रवाल ने पुरानी पेंशन व्यवस्था को लेकर विधान परिषद में लिखित जवाब दिया। कहा, “पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू करने का हमारा कोई इरादा नहीं है।”
उन्होंने बताया कि बीजेपी सरकार ने 5004.03 करोड़ रुपए 6 लाख से अधिक कर्मचारियों को दे दिया। ये पैसा नई पेंशन योजना के तहत वर्षों से बकाया था। हालांकि, इससे कर्मचारी नहीं माने और उनकी पुरानी पेंशन की मांग बरकरार रही।