आगरा के एक परिषदीय स्कूल में शिक्षिकाओं के डांस करते हुए वायरल वीडियो के आधार पर बेसिक शिक्षा अधिकारी ने कार्रवाई करते हुए उनसे लिये गए स्पष्टीकरण से असहमति के आधार पर उन्हें निलंबित कर दिया जिसकी कवरेज़ तकरीबन हर मीडिया चैनल और प्रिंट मीडिया ने करके खुद की वाहवाही लूटकर खुद की ही पीठ थपथपाई और संविधान के चौथा स्तम्भ में एक और कीर्तिमान स्थापित कर दिया।
तो अब प्रश्न ये है कि शिक्षिकाओं के निलंबित होने से उनके द्वारा किये गए नृत्य या उसके वीडियो को वापस कैसे लाया जाए ? जिससे उनके नृत्य करने का अपराध माफ हो। दूसरा नृत्य करना अपराध की श्रेणी में कब से आने लगा ? क्या किसी ने अब तक ये सोचा कि वायरल शब्द ने उन महिला टीचर्स की आत्मा को कितना लहूलुहान किया होगा ?जिन्हों नृत्य करने का घोर अपराध कर डाला।
वैसे भी डिजिटल ज़माने के दौर में अब सोशल मीडिया की भाषा में निजी फ़ायदे को देखते हुए शेयर किए गए किसी भी अच्छे से अच्छे वीडियो को वायरल करार देना आम बात हो गयी है इसलिए ऐसी घटनाओं पर सामाजिक और बौद्धिक चिन्तन की नितांत आवश्यकता है।
ऐसा संभव है कि अपनी निजी समस्या के स्ट्रेस को कम करने को लेकर महिला शिक्षकों ने नृत्य किया हो , ऐसा भी हो सकता है कि उन्हें कोई ख़ुशख़बरी मिली हो, या ऐसा भी हो सकता है कि उनका स्कूल का काम खत्म हो गया हो और लंच टाइम के समय का उपयोग उन्हों नृत्य कर के किया हो। कुछ भी हो सकता है। BSA के संज्ञान में या किसी की शिकायत के द्वारा विभागीय कार्रवाई के डर से शायद उन्हों ने वो स्पष्टीकरण नहीं दे पाया हो जो सही तो था पर व्यावहारिक नहीं। उनके नृत्य से अगर विभाग की छबि धूमिल हो रही थी तो केवल उनको चेतावनी दी सकती थी,निलबंन जैसे मानसिक पीड़ा नहीं। शिक्षक पद ही ऐसा है कि छोटी से छोटी घटना इस जगत को अन्य विभाग की अपेक्षा जल्दी शर्मसार कर देती है इसलिए छोटी चेतावनी ही शिक्षकों के लिए बहुत बड़ी होती है।
नृत्य का अगर विश्लेषण किया जाए तो आप पायेंगे कि भारतीय संस्कृति में नृत्य भी मानवीय अभिव्यक्तियों का एक रसमय प्रदर्शन रहा है जो एक सार्वभौम कला है जिसका जन्म ही मानव जीवन के साथ हुआ है। बालक जन्म लेते ही रोकर अपने हाथ पैर मार कर अपनी भावाभिव्यक्ति करता है कि वह भूखा है- इन्हीं आंगिक -क्रियाओं से नृत्य की उत्पत्ति हुई है।
वहीं भारतीय पुराणों में भी यह दुष्ट नाशक एवं ईश्वर प्राप्ति का साधन माना गया है। अमृत मंथन के समय भी दुष्ट राक्षसों को अमरत्व प्राप्त होने के संकट को भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर अपने लास्य नृत्य के द्वारा ही तीनों लोकों को राक्षसों से मुक्ति दिलाई थी, इसी प्रकार दैत्य भस्मासुर के वध के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर अपने मोहक सौंदर्यपूर्ण नृत्य से उसे अपनी ओर आकृष्ट कर उसका वध किया था।
देवेन्द्र इन्द्र का अच्छा नर्तक होना तथा स्वर्ग में अप्सराओं के अनवरत नृत्य की धारणा से हम भारतीयों के प्राचीन काल से नृत्य से जुड़ाव की ओर ही संकेत करता है। भगवान शंकर तो नटराज कहलाए और तो और भगवान विष्णु के अवतारों में सर्वश्रेष्ठ एवं परिपूर्ण कृष्ण नृत्यावतार ही हैं इसी कारण वे ‘नटवर’ कृष्ण कहलाये।
मतलब कि पत्थर के समान कठोर व दृढ़ प्रतिज्ञ मानव हृदय को भी मोम सदृश पिघलाने की शक्ति इस कला में है। यही इसका मनोवैज्ञानिक पक्ष है क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो यह कला-धारा पुराणों- श्रुतियों से होती हुई आज तक अपने शास्त्रीय स्वरूप में धरोहर के रूप में हम तक प्रवाहित न होती। फ़िलहाल नृत्य देखकर होने वाली सुखद अनुभति न जाने कैसे बौखलाहट में बदल गयी ये भी एक रिसर्च का विषय है।
तो जब नृत्य कला धार्मिक, भारतीय और पौराणिक संस्कृति का अहम हिस्सा है तो नृत्य करती शिक्षिकाओं का निलंबन क्यों ? तकरीबन हर मीडिया द्वारा उन्हें दोषी ठहराते हुए उनको कटघरे में अपराधी बनाकर खड़ा करने का मानसिक,शारीरिक,उत्पीड़न क्यों ?इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि महिला शिक्षकों को बदनाम और संकीर्ण मानसिकता के चलते किसी ने उनका नृत्य वीडियो शायद इतना वायरल नहीं किया जितना कि उनका वीडियो मीडिया ने मात्र कवरेज़ के नाम से वायरल कर दिया ? तो फिर इस पर मीडिया का इतना विधवा विलाप क्यों ? दूसरा यह कि यहाँ आत्मचिंतन की बात ये भी है कि शिक्षा के अधिकारियों का मीडिया से इतना क्या डर?
उत्तर प्रदेश में शिक्षकों के हिमायती शिक्षक संगठन के पदाधिकारियों ने शायद अभी इस मामले में आत्मचिंतन नहीं कर पाया होगा कि आख़िर शिक्षिकाओं द्वारा किये गए नृत्य मे ऐसी क्या अश्लीलता थी? ऐसा क्या फूहड़पन था,या विभाग के अधिकारियों को ऐसी क्या नग्नता दिखी कि आनन फानन में आव देखा न ताव, निलंबित कर दिया। चेतावनी देकर छोड़ने के विकल्प क्यों नहीं लिया गया?
अभी हाल ही में जनपद बिजनौर में BEO के पाल्यों को स्कूल लाने पर कार्रवाई वाले आदेश को न्यूज़ पी. आर. ने उसी दिन कवरेज़ देकर जब अपनी ख़बर से खण्डन किया तो दो दिन बाद शिक्षक संघठन की नींद खुली और 3 दिन बाद BEO के आदेश को महिला सम्मान की बात का हवाला देकर BSA द्वारा निरस्त कर दिया गया।दूसरा निरस्त करने का कारण शिक्षक संघ का विरोध भी शामिल है।तो फिर इस नृत्य प्रकरण में अभी तक शिक्षक संघ की ओर से कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं आयी ? क्या उन्हें अब भी इस बात का इंतज़ार की इस नृत्य प्रकरण को विरोध करने की कोई पहल करे फ़िर वो नारी के सम्मान में आगे आयेंगे।
शायद समाज के,शिक्षा के या फ़िर पत्रकारिता जगत के कुछ मनीषी इस बात के विरोध में होंगे कि उनको महिला शिक्षिकाओं के नृत्य करने से कोई आपत्ति नहीं ,उन्हें आपत्ति इस बात से है कि यह नृत्य विद्यालय में नहीं होना चाहिए था इससे समाज में ग़लत मैसेज जा सकता है।
तो ऐसी विचार धारा के प्रकांड पंडितों को यह भी सोचना चाहिए कि विद्यालय शिक्षा का मंदिर है और इसी मंदिर से सैकड़ो हज़ारों नृत्य शिक्षक औंरो को नृत्य शिक्षा देकर इसे धरोहर के रूप में प्रवाहित कर रहें हैं।
कहने वालों ने तो यह भी कह डाला कि स्कूल में गजबन पानी ले चली , यार न मिले तो मरजावां जैसे गानों पर थिरकना गलत है।मगर ये दोनों गाने या फिर कुत्ती मोहब्बत,या फिर तेरी आँखों का ये काजल या छत पे सोया था बहनोई जैसा कोई भी गाना जब तक सरकार की ओर से प्रतिबंधित की श्रेणी में नहीं आता तब तक उस पर थिरकना गलत कैसे?
दरअसल विद्यालय में नृत्य करने के कारण शायद मीडिया ,शिक्षाधिकारी समाज को ज्यादा दिक्कत हो गयी।अगर इन्हीं महिला शिक्षकों ने जनपद स्तर के किसी शैक्षिक कार्यक्रम में शिक्षा के अधिकारियों के सामने नृत्य किया होता तो समाज और मीडिया कहती कि महिला शिक्षकों ने फलाँ कार्यक्रम में नृत्य कर समा बांधा।
अगर किसी सैफई महोत्सव में नृत्य किया होता तो लोग और मीडिया कहती कि महिला शिक्षकों ने CM की उपस्थिति में नृत्य कर जादू की छटा बिखेरी।
अगर आगरा महोत्सव में महिला शिक्षकों ने यही नृत्य किया होता तो कहा जाता कि लोग बोल उठे वाह, नृत्य पर झूमें दर्शक।
अगर महिला शिक्षकों द्वारा यही नृत्य गोरखपुर महोत्सव में किया जाता तो कहा जाता कि महिला शिक्षकों ने नृत्य कर दर्शकों का मोहा मन।
अगर यही नृत्य इन्हीं महिला शिक्षकों ने 15 अगस्त ,26 जनवरी , मिशन प्रेरणा उत्सव, या फिर स्कूल के वार्षिकोत्सव में किया होता तो इसे रंगारंग कार्यक्रम का नाम दे दिया जाता।
और सबसे बड़ी बात यह कि अगर यही नृत्य डांस इंडिया डांस पर महिला शिक्षकों द्वारा किया गया होता और फाइनल में यह नृत्य पहला पुरस्कार प्राप्त कर लेता तो बेसिक विभाग का सीना इतना चौड़ा हो जाता कि हर जिले से इन शिक्षकों के लिए पुरस्कारों की बौछारें हो जाती। ख़ैर जो भी है महिला शिक्षकों द्वारा विद्यालय में किया गया नृत्य अक्षम्य है जो इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में गिना जाएगा हो सके ऐसे अपराध करने वाले टीचर्स के लिए शिक्षा विभाग सरकार से किसी अन्य कोर्ट में मुकदमा चलाने की वक़ालत करे जिससे ऐसा घृणित नृत्य करने से पहले टीचर्स की रूह कांप जाए।
आशय ये है कि किसी के द्वारा किये गये नृत्य या उसकी शैली को जगह देखकर परिभाषित करना संकीर्ण मानसिकता का परिचायक है क्योंकि ऊपर बताये गए किसी भी कार्यक्रम में अगर यही नृत्य होता तो उसका वीडियो न तो वायरल की श्रेणी में आता न कार्रवाई की।
और अंत में यहाँ एक बात और स्पष्ट होनी चाहिए कि महिला शिक्षकों के निलंबन के बाद आने वाली चुनावी रैलियों , राजनीतिक कार्यक्रमों में या अन्य किसी भी कार्यक्रम के दौरान हुए अश्लील,फूहड़ और भद्दे नृत्यों पर क्या इसी तरह किसी बड़े अधिकारी या शासन से , सम्बंधित नृत्य कराने वालों के ख़िलाफ़ किसी भी प्रकार की कोई कार्रवाई होगी या फ़िर टीचर्स को ही हर बार बलि का बकरा बनाया जाएगा।