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परिषदीय विद्यालयों के शिक्षकों की पदोन्नति में क्या है वरिष्ठता का आधार? विभाग और कोर्ट के आदेशानुसार पढ़िए तय किये गए मानक

NewsPr Today by NewsPr Today
August 9, 2021
in शिक्षा
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परिषदीय विद्यालयों के शिक्षकों की पदोन्नति में क्या है वरिष्ठता का आधार? विभाग और कोर्ट के आदेशानुसार पढ़िए तय किये गए मानक
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परिषदीय विद्यालयों के शिक्षकों की पदोन्नति की सुगबुगाहट से शिक्षकों के बीच वरिष्ठता को लेकर उहापोह शुरू हो गयी है माना जाता है कि पदोन्नति का आधार उनकी वरिष्ठता होती है। वरिष्ठता मामलों में होने वाले विवाद से बचने के लिए पूर्व में सचिव बेसिक शिक्षा परिषद ने हस्तक्षेप करते हुए दिशा निर्देश जारी किया था जिसमें परिषदीय शिक्षकों की वरिष्ठता के लिए जिले में तैनाती के बजाय सेवा शुरू करने की तिथि को आधार बनाने की बात कही गयी थी।

गौरतलब है कि परिषदीय शिक्षकों को जिला कैडर के आधार पर पूर्व में वरिष्ठता तय किए जाने का चलन रहा है। इसके चलते दूसरे जिले से स्थानांतरण पर आए शिक्षकों को नुकसान उठाना पड़ता था। अंतर्जनपदीय तबादलों से आए शिक्षकों की पूर्व सेवा को भी वरिष्ठता के लिए गणना में शामिल किए जाने से हजारों वरिष्ठ शिक्षकों को लाभ होगा।

पूर्व में परिषदीय शिक्षकों की पदोन्नति की प्रक्रिया में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों के द्वारा बेसिक शिक्षा परिषद से परामर्श मांगा गया था। इस पर सचिव बेसिक शिक्षा परिषद ने यह दिशा निर्देश जारी किया था कि निर्देश के अनुसार किसी संवर्ग में किसी अध्यापक की वरिष्ठता मौलिक रूप से उसकी नियुक्ति के दिनांक से गिनी जाएगी। मौलिक नियुक्ति से तात्पर्य प्रथम तिथि से है। वरिष्ठता सूची अध्यापक के प्रथम नियुक्ति तिथि के आधार पर तैयार की जाएगी। वहीं मृतक आश्रित या अन्य अप्रशिक्षित अध्यापकों की मौलिक नियुक्ति तिथि अध्यापक के प्रशिक्षित होने की तिथि से मानी जाएगी।

प्रधानाध्यापक के लिए तीन साल की सेवा जरूरी

किसी भी शिक्षक के लिए प्रधानाध्यापक बनने के लिए जरूरी है कि शिक्षक उच्च प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक व प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक के रूप में तीन साल तैनात रहा हो।

उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा अध्यापक ) सेवा नियमावली , 1981 का ज्येष्ठता नियम 22

1. किसी संवर्ग में किसी अध्यापक की ज्येष्ठता मौलिक रूप में उसकी नियुक्ति के दिनांक से अवधारित की जायेगी : परन्तु दो या अधिक व्यक्ति एक ही दिनांक को नियुक्त किये जायें तो उनकी ज्येष्ठता उस क्रम से अवधारित की जायेगी जिसमें उनके नाम , यथास्थिति , नियम 17 या 17 ( क ) या नियम 18 में निर्दिष्ट सूची में आये हों ।

टिप्पणी

( 1 ) सीधी भर्ती द्वारा चयन किया गया कोई अभ्यर्थी अपनी ज्येष्ठता खो सकता है यदि किसी रिक्त पद का उसे प्रस्ताव किये जाने पर वह विधिमान्य कारणों के बिना कार्यभार ग्रहण करने में विफल रहे । किसी विशिष्ट मामले में कारण विधिमान्य है या नहीं इसके सम्बन्ध में विनिश्चय नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा किया जायेगा ।

( 2 ) किसी अध्यापक की , जिसे नियम 2। के उपबन्धों के अनुसार एक स्थानीय क्षेत्र से दूसरे स्थानीय क्षेत्र में स्थानान्तरित कर दिया गया हो ज्येष्ठता मे उसका नाम , स्थानान्तरण का आदेश जारी किये जाने के दिनाक को उस स्थानीय क्षेत्र से जिसमें उसका स्थानान्तरण किया गया है , सम्बन्धित तत्स्थायी वर्ग या श्रेणी के अध्यापकों की सूची के सबसे नीचे रख दिया जायेगा । ऐसा व्यक्ति किसी प्रतिकर का हकदार न होगा ।

समीक्षा

माननीय उच्च न्यायालय की खण्डपीठ ने यह अभिनिीत किया है कि जू.जे. स्कूल के सभी अध्यापक जो 1968 से पूर्व नियुक्त हुए थे किन्तु प्रशिक्षण तत्पश्चात् प्राप्त किया , अपनी नियुक्ति के दिनांक से ज्येष्ठ मान्य किये जायेंगे ।

All those teachers of Junior Basic Schools who were appointed prior to 1968 but received their training latter on are to be treated as senior in order of their appointment .

वरिष्ठता निर्धारण हेतु उनकी विहित तिथि नियुक्ति तिथि है प्रशिक्षण नही :

Seniority is to be reckoned with from the date of the initial appointment and not from the date of this training .

‘ उक्त आदेश के विरुद्ध उ.प्र . बेसिक शिक्षा परिषद ने माननीय उच्चतम न्यायालय का आश्रय लिया । माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अवधारित किया कि अध्यापकों द्वारा प्रशिक्षण अर्हता प्राप्त करने के दिनांक से ज्येष्ठता निर्धारित होगी । अप्रशिक्षित अध्यापक के रूप में नियुक्ति के दिनाँक से नहीं ।

ज्‍येष्‍ठता निर्धारण के सिद्धान्‍त

उच्‍चतम न्‍यायालय की विभिन्‍न निर्णयजविधियों द्वारा प्रतिपादित ज्‍येष्‍ठता निर्धारण के सुप्रतिष्‍ठित सिद्धान्‍त निम्‍नवत हैं:-

1. मौलिक नियुक्‍ति, चाहे स्‍थायी पद पर हो अथवा अस्‍थायी पद पर, की तिथि से ज्‍येष्‍ठता निर्धारित होगी। (जी.सी. गुप्‍ता बनाम एन.के. पांडे, 1988 (7) एस.एल.आर. 706; केशव चन्‍द्र जोशी बनाम भारत संघ, 1992 (8) एस.एल.आर. 636)

2. नियमानुसार की गई नियुक्‍ति अर्थात मौलिक नियुक्‍ति की तिथि से ज्‍येष्‍ठता का निर्धारण किया जाएगा। तदर्थ सेवक की ज्‍येष्‍ठता, नियमानुसार नियमित चयन के उपरान्‍त नियुक्‍ति की तिथि से आगणित की जाएगी। (गुजरात राज्‍य बनाम सी.जी. रैयानी, 1995 (4) एस.एल.आर. 636; श्रीमती अनुराधा मुखर्जी बनाम भारत संघ, 1996 (2) एस.एल.आर. 625)

3. जब कोई व्‍यक्‍ति किसी पद पर नियमानुसार नियुक्‍त किया जाए तो उसकी ज्‍येष्‍ठता उसकी नियुक्‍ति की तिथि से निर्धारित की जाएगी, उसके स्‍थायीकरण की तिथि से नहीं। (जी. गंगारसनिया बनाम ए. नरायनस्‍वामी, 1995 (7) एस.एल.आर. 523; डाइरेक्‍ट रिक्रूट क्‍लास-2 इंजीनियिरंग आफिसर्स एसोशिएसन बनाम महाराष्‍ट्र राज्‍य, (1990) 2 एस.सी.सी. 715)

4. ज्‍येष्‍ठता का आगणन, नियुक्‍ति की तिथि से किया जाएगा, पदग्रहण करने की तिथि से नहीं। (भयराम शर्मा बनाम हरियाणा राज्‍य विद्युत परिषद् 1993 (5) एस.एल.आर. 282)

5. ज्‍येष्‍ठता निर्धारण के लिए स्‍थानापन्‍न अवधि को आगणित नहीं किया जाएगा। (डाईरेक्‍ट रिक्रूट क्‍लास-2 इंजीनियरिग आफिसर्स एसोशिएसन बनाम महाराष्‍ट्र राज्‍य, (1990) 2 एस.सी.सी. 715)

6. जब कई चयन हुए हों तब उसके फलस्‍वरूप नियुक्‍त सेवकों की ज्‍येष्‍ठता चयन की तिथि से नियत की जाएगी। जो व्‍यक्‍ति पूर्ववर्ती चयन के फलस्‍वरूप नियुक्‍त किए गए हों, वे पश्‍चातवर्ती चयन के फलस्‍वरूप नियुक्‍त व्‍यक्‍तियों से ज्‍येष्‍ठ होंगे।(राजस्‍थान राज्‍य बनाम फतेह चन्‍द सोनी, 1996 (1) एस.एल.आर.1)

7. एक व्‍यक्‍ति का चयन, सीधी भर्ती द्वारा, सन् 1977 में हो गया था लेकिन उसे, उसकी किसी गलती के बिना, सन् 1981 में नियुक्‍त किया गया। उच्‍चतम न्‍यायालय ने अवधारणा किया कि वह सन् 1977 की चयन सूची के अनुसार ज्‍येष्‍ठता पाएगा। (पिल्‍ला सीताराम पटुर्डु बनाम भारत संघ, 1996 (2) एस.एल.आर. 892)

8. पूर्ववर्ती चयन में असफल अभ्‍यर्थियों को, पश्‍चातवर्ती चयन में चयनित अभ्‍यर्थियों की नियुक्‍ति के उपरान्‍त, नियुक्‍त कर दिए जाने पर, पश्‍चातवर्ती चयन वाले अभ्‍यर्थियों के ऊपर ज्‍येष्‍ठता प्राप्‍त नहीं कर सकते हैं। (उ. प्र. राज्‍य बनाम रफीकुरिन, 1988 (1) एस.एल.आर. 491)

9. नियमों में नियम प्रक्रिया का अनुसरण किए बिना की गयी तदर्थ नियुक्‍ति के उपरान्‍त तदर्थ सेवक का नियमित चयन हो जाने पर तदर्थ सेवक की सेवा अवधि की ज्‍येष्‍ठता निर्धारण के लिए आगणित नहीं किया जाएगा। (चीफ आँफ नेवल स्‍टाफ बनाम जी. गोपाल कृष्‍ण पिल्‍लई, 1996 (1) एस.एल.आर. 631)

10. जब किसी व्‍यक्‍ति की नियुक्‍ति तदर्थ ढंग से हुई हो, नियमानुसार न हुई हो तथा अल्‍पकालिक व्‍यवस्‍था के लिए की गयी हो तब ऐसे पद पर स्‍थानापन्‍न अवधि को ज्‍येष्‍ठता निर्धारण के लिए आगणित नहीं किया जायेगा। (सैयद खालिद रिजवी बनाम भारत संघ, 1993 (1) एस.एल.आर. 89 ; डाईरेक्‍ट रिक्रूट क्‍लास-1 इंजीनियिरंग आफिसर्स एसोशिएसन बनाम महाराष्‍ट्र राज्‍य, (1990) 2 एस.सी.सी. 715)

11. तदर्थ ढंग से या स्‍थानापन्‍न रूप से की गयी नियुक्‍ति या प्रोन्‍नति की अवधि को ज्‍येष्‍ठता निर्धारण के लिए आगणित नहीं किया जा सकता है। तदर्थ सेवकों की ज्‍येष्‍ठता का आगणन, उनकी मौलिक नियुक्‍ति की तिथि से किया जाएगा। (पश्‍चिम बंगाल राज्‍य बनाम अघोर नाथ डे, 1993 (2) एस.एल.आर. 528 ; आबकारी आयुक्‍त, कर्नाटक बनाम वी. श्रीकान्‍त, 1993 (2) एस.एल.आर. 339; चीफ आफ नेवल स्‍टाफ बनाम जी.के. पिल्‍लई, 1996 (1) एस.एल.आर. 631)

12. पूर्वगामी तिथि से नियुक्‍ति करके “काल्‍पनिक ज्‍येष्‍ठता” प्रदान करना अवैध है, विशेषकर जब इसके परिणामस्‍वरूप सेवा में विद्यमान व्‍यक्‍तियों की ज्‍येष्‍ठता प्रभावित होती हो। (एस.के. साहा बनाम प्रेम प्रकाश अग्रवाल, 1994 (1) एस.एल. आर. 37)

13. सरकारी सेवा में आरक्षित वर्गों के लिए आरक्षण प्रदान करने का नियम, ज्‍येष्‍ठता प्रदान नहीं करता है। (भारत संघ बनाम वीरपाल सिंह चौहान, 1995 (5) एस.एल.आर. 400)

14. प्रोन्‍नति के मामले में ज्‍येष्‍ठता का निर्धारण मौलिक प्रोन्‍नति की तिथि से होगा, स्‍थानापन्‍न प्रोन्‍नति की तिथि से नहीं। (भारत संघ बनाम मेजर जनरल दयानन्‍द खुराना, 1991 (5) एस.एल.आर. 47)

15. स्‍थानापन्‍न प्रोन्‍नति की निरन्‍तरता में चयन के उपरान्‍त नियमित प्रोन्‍नति होने की दशा में ज्‍येष्‍ठता उस तिथि से आगणित की जाएगी। जिस तिथि को चयन समिति ने नियमानुसार चयन सूची में उसका नाम रखा। (सैयद खालिद रिज़वी बनाम भारत संघ, 1993 (1) एस.एल.आर. 89)

16. जब किसी सेवा में सीधी भर्ती एवं प्रोन्‍नति, दोनों, द्वारा भर्ती का प्रावधान हो तथा सीधी भर्ती के कोटा के पदों पर प्रोन्‍नति द्वारा भर्ती कर ली गयी हो तो प्रोन्‍नत सेवकों की ज्‍येष्‍ठता उस पश्‍चात्वर्ती तिथि से आगणित की जाएगी जिस तिथि को पदोन्‍नति के कोटा में पद उपलब्‍ध हो जाए। सीधी भर्ती द्वारा नियुक्‍त सेवक को उसके कोटा के पद की उपलब्‍धता के आधार पर पहले से ज्‍येष्‍ठता मिल जाएगी। (मदन गोपाल गर्ग बनाम पंजाब राज्‍य, 1995 (4) एस.एल.आर. 412)

17. अजीत कुमार रथ एवं अन्‍य को सहायक अभियन्‍ता के पद पर, तदर्थ रूप से, उपलब्‍ध रिक्‍ति के सापेक्ष सेवा नियमों के अनुरूप चयन करके 7.8.72 को, प्रोन्‍नत किया गया था। उसके पश्‍चात् उड़ीसा राज्‍य लोक सेवा आयोग की सहमति से उन्‍हें दिनांक 17.7.76 के आदेश से नियमित प्रोन्‍नति प्रदान की गयी। दिनांक 7.1.72 से 12.9.72 के बीच प्रतिपक्षी सं.-2 से 11 तक सीधी भर्ती से नियुक्‍त किये गये थे। उसके पश्‍चात् प्रोन्‍नत एवं सीधी भर्ती से नियुक्‍त सहायक अभियन्‍तागण के बीच ज्‍येष्‍ठता का विवाद उत्‍पन्‍न हुआ। उच्‍चतम न्‍यायालय (अजीत कुमार रथ बनाम उड़ीसा राज्‍य, (1999) 9 एस.सी.सी. 596) ने कहा कि श्री अजीत कुमार रथ एवं अन्‍य अपीलार्थी की प्रोन्‍नति यद्यपि तदर्थ/अनंतिम थी तथापि सेवा नियमों के अनुरूप, आयोग की सहमति के अध्‍यासीन, की गयी थी एवं बाद में आयोग ने भी उनकी प्रोन्‍नति पर सहमति दे दिया था। अत: 1972 से 1976 तक की उनकी सम्‍पूर्ण तदर्थ सेवा, ज्‍येष्‍ठता निर्धारण के लिए आगणित की जाएगी। तदनुसार प्रोन्‍नत अभियन्‍तागण, उक्‍त चर्चित सीधी भर्ती द्वारा नियुक्‍त सहायक अभियन्‍तागण से ज्‍येष्‍ठ हैं।

18. एक संवर्ग में सीधी भर्ती द्वारा नियुक्‍ति के उपरान्‍त, पदोन्‍नति द्वारा भर्ती करते समय पूर्वगामी तिथि से पदोन्‍नत किया गया तथा उन्‍हें सीधी भर्ती द्वारा नियुक्‍त सेवकों से ज्‍येष्‍ठ कर दिया गया, जबकि उस पूर्व तिथि को वे संवर्ग में थे ही नहीं। उच्‍चतम न्‍यायालय ने अवधारणा किया कि प्रोन्‍नत सेवकों को ज्‍येष्‍ठ बनाना गलत है, जब से संवर्ग में थे ही नहीं तो उन्‍हें पूर्वगामी तिथि से प्रोन्‍नत नही किया जा सकता था। (विनोदानन्‍द यादव बनाम बिहार राज्‍य, 1995 (7) एस.एल.आर. 713; बिहार राज्‍य बनाम अखौरी सचिन्‍द्रानाथ, 1991 (2) एस.एल.आर. 608)

19. “क” को सहायक निदेशक के पद पर दिनांक 27.9.80 को तदर्थ ढंग से प्रोन्‍नत किया गया था। “ख” को सहायक निदेशक के पद पर लोक सेवा आयोग के चयन के उपरान्‍त सीधी भर्ती द्वारा दिनांक 29.9.80 को नियुक्‍त किया गया था। उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा कि “ख” को “क” से ज्‍येष्‍ठ माना जाएगा। (वी.पी. श्रीवास्‍तव बनाम मध्‍य प्रदेश राज्‍य,1996 (1) एस.एल.आर. 819; वी.एस. रेड्डी बनाम आन्‍ध्र प्रदेश राज्‍य, 1994 (5) एस.एल.आर. 715)

20. यदि आरक्षित वर्ग का सेवक, आरक्षण के कारण, सामान्‍य वर्ग के अपने से ज्‍येष्‍ठ सेवक से पहले, उच्‍च पद पर प्रोन्‍नत हुआ हो तो जब वह ज्‍येष्‍ठ सेवक उस पद पर प्रोन्‍नत होगा तो वह अपनी ज्‍येष्‍ठता पुन: प्राप्‍त कर लेगा। (भारत संघ बनाम वीरपाल सिंह चौहान, 1995 (5) एस.एल.आर. 400 ; अजीत सिंह बनाम पंजाब राज्‍य, 1999(5) एस.एल.आर. 268)

21. ज्‍येष्‍ठता का विनिश्‍चय करने के लिए सम्‍पूर्ण सेवा अवधि सुसंगत नहीं होती है, बल्‍कि एक विशिष्‍ट वर्ग, प्रवर्ग या ग्रेड में की गयी सेवा अवधि ज्‍येष्‍ठता निर्धारण के लिए सुसंगत होती है। दूसरे शब्‍दों में पैतृक विभाग में समतुल्‍य पद धारण किये होने की अवधि ज्‍येष्‍ठता निर्धारण के प्रयोजनार्थ सुसंगत अवधि है। (एम. रामचन्‍द्रन बनाम गोविन्‍द बल्‍लभ, (1999) 8 एस.सी.सी. 592)

22. जब कोई सरकारी सेवक कोई विशिष्‍ट पदधारण कर रहा हो तथा उसे किसी अन्‍य सरकारी विभाग में उसी या उसके समान पद पर अंतरित कर दिया जाए तब अंतरण से पूर्व की गयी सेवा अवधि को अंतरण के पश्‍चात् धारित पद पर ज्‍येष्‍ठता अवधारित करने पर विचार में लिया जाएगा। सेवा अंतरण उसकी पूर्व सेवा अवधि को समाप्‍त नहीं कर सकता है। जहां विभिन्‍न स्रोतों से कार्मिकों को भर्ती करके एक नयी सेवा बनायी गयी हो वहां उन कार्मिकों के पैतृक विभाग में उनके द्वारा की गयी सेवा को नये संवर्ग में ज्‍येष्‍ठता आगणित करते समय विचार में लिया जाएगा। (आर. एस. मकासी बनाम आई. एम. मेनन, (1982) 1 एस.सी.सी. 379; विंग कमाण्‍डर जे. कुमार बनाम भारत संघ, (1982) 2 एस.सी.सी. 116; के. माधवन बनाम भारत संघ, (1987) 4 एस.सी.सी. 566; के. अंजइया बनाम के. चन्‍द्रइया, (1998) 3 एस.सी.सी. 218)

23. देवराज गुप्‍ता बनाम पंजाब राज्‍य (जे. टी. 2001 (4) एस.सी. 82) के मामले में उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा कि उपायुक्‍त कार्यालय के विभिन्‍न पदों पर भर्ती को विनियमित करने हेतु, भारत का संविधान के अनुच्‍छेद-309 के अन्‍तर्गत, सेवा नियमावली प्रवृत्‍त है जिसके नियम-10 में ज्‍येष्‍ठता के निर्धारण हेतु इस आशय का प्रावधान है कि सेवा के सदस्‍यों की पारस्‍परिक ज्‍येष्‍ठता सेवा में उनकी निरन्‍तर नियुक्‍ति की तिथि से अवधारित की जाएगी।

24. ए.सी. थलवाल बनाम उच्‍च न्‍यायालय, हिमाचल प्रदेश (2000) 7 एस.सी.सी.1) के मामले में भारतीय शस्‍त्र सेना के सैन्‍य वियोजित अधिकारियों के लिए हिमाचल प्रदेश न्‍यायिक सेवा में रिक्‍तियों का आरक्षण नियमावली, 1975, उच्‍च न्‍यायालय के परामर्श से पांच वर्ष के लिए बनायी गयी थी। जब अप्रैल, 1980 में इसकी अवधि समाप्‍त हो गयी तब राज्‍य सरकार ने इस नियमावली की अवधि बढ़ाने का प्रस्‍ताव उच्‍च न्‍यायालय को प्रेषित किया किन्‍तु उच्‍च न्‍यायालय ने असहमति संसूचित कर दिया। तदुपरान्‍त राज्‍य सरकार ने सन् 1981में एक नयी नियमावली, उच्‍च न्‍यायालय से परामर्श किये बगैर, बना दिया। जब उच्‍च न्‍यायालय के संज्ञान में यह नियमावली लायी गयी तो उच्‍च न्‍यायालय ने अपनी पूर्व की असहमति के बावजूद नियमावली बनाये जाने पर आपत्‍ति संसूचित किया। किन्‍तु सरकार ने कोई प्रतिउत्‍तर नहीं दिया एवं इस नियमावली के अधीन आरक्षण किया जाता रहा, तथा ज्‍येष्‍ठता आदि का लाभ दिया जाता रहा। उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्‍छेद-234 के उपबन्‍ध के अनुसार राज्‍यपाल द्वारा, लोक सेवा आयोग एवं उच्‍च न्‍यायालय से परामर्श करने के उपरान्‍त बनायी गयी नियमावली के अनुरूप राज्‍य सरकार की न्‍यायिक सेवा में नियुक्‍तियां की जाएंगी। यह परामर्श किया जाना अनिवार्य है। इस अनुच्‍छेद की अपेक्षानुसार उच्‍च न्‍यायालय से परामर्श किये बगैर बनायी गयी नियमावली असंवैधानिक एवं निष्‍प्रभावी है एवं इसके अधीन अपीलार्थीगण को ज्‍येष्‍ठता का जो लाभ दिया गया है वह भी निष्‍प्रभावी है।

25. प्रतिनियुक्‍ति पर जाने मात्र से सेवक, मूल विभाग में अपनी ज्‍येष्‍ठता को नहीं खोता है, उसकी ज्‍येष्‍ठता यथावत बनी रहेगी। (आर.एल. गुप्‍ता बनाम भारत संघ, 1988 (2) एस.एल.आर. 133)

26. ज्‍येष्‍ठता निर्धारण का कोई नियम या प्रशासनिक निदेश न हो तो “निरन्‍तर सेवा काल” के आधार पर ज्‍येष्‍ठता निर्धारित की जाएगी। (जी.एस. लाम्‍बा बनाम भात संघ, 1985 (1) एस.एल.आर. 687; बसन्‍त कुमार जायसवाल बनाम मध्‍य प्रदेश राज्‍य, 1987 (5) एस.एल.आर. 281; एम.बी. जोशी बनाम सतीश कुमार पांडे, 1992 (5) एस.एल.आर. 611)

27. किसी संवर्ग में कर्मचारियों की ज्‍येष्‍ठता नियमों के अनुरूप अवधारित की जाएगी यदि उन नियमों में ज्‍येष्‍ठता के बारे में उपबन्‍ध हो; अन्‍यथा डायरेक्‍ट रिक्रूट क्‍लास-2 इंजीनियिरंग आफिसर्स एसोशिएशन बनाम महाराष्‍ट्र राज्‍य (1990) 2 एस.सी.सी. 715 में प्रतिपादित सिद्धान्‍तों पर ज्‍येष्‍ठता अवधारित की जा सकती है। (भारत संघ बनाम ललिता एस. राव एवं अन्‍य, (2001) 5 एस.सी.सी. 384)

28. किसी कर्मचारी को संवर्ग अपनी ज्‍येष्‍ठता, अपनी नियुक्‍ति की तिथि को प्रवृत्‍त नियमों के अनुसार, अवधारित कराने का अधिकार प्राप्‍त होता है। (भारत संघ बनाम एम. रवि वर्मा, ए.आई.आर. 1972 एस.सी. 670; मेर्विन कांटिन्‍हो बनाम कस्‍टम कलेक्‍टर, ए.आई.आर. 1967 एस.सी. 52; डी.पी. शर्मा बनाम भारत संघ, ए.आई.आर. 1989 एस.सी. 1071 ; पी. मोहन रेड्डी बनाम ई. ए.ए. चार्ल्‍स, ए.आई.आर. 2001 एस.सी. 1210; निरंजन प्रसाद सिन्‍हा बनाम भारत संघ, (2001) 5 एस.सी.सी. 564) कर्मचारीगण की ज्‍येष्‍ठता, बार-बार, जब कभी ज्‍येष्‍ठता निर्धारण का मानदंड परिवर्तित होवे, पुनर्निर्धारित नहीं की जाएगी।

29. ज्‍येष्‍ठता में मनमाना परिवर्तन करने से संविधान के अनुच्‍छेद 16 एवं सरकारी सेवक के सिविल अधिकार का अतिक्रमण होता है। (एस.के.घोष बनाम भारत संघ, 1968 एस.एल.आर. 741)

30. यदि किसी सेवा-संवर्ग में, कोटा के आधार पर भर्ती के दो स्रोत हों तो कार्मिकों को पारस्‍परिक ज्‍येष्‍ठता का निर्धारण कोटा के अनुरूप किया जायेगा। (सोनल बनाम कर्नाटक राज्‍य, ए.आई.आर. 1987 एस.सी. 2359)

31. उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा कि भर्ती बोर्ड द्वारा तैयार किया गया मेरिटक्रम बनाये रखना चाहिए तथा चयनित अभ्‍यर्थियों की पारस्‍परिक ज्‍येष्‍ठता उसी के अनुसार बनायी रखी जानी चाहिए। अत: पहले प्रशिक्षण प्राप्‍त कर लेने मात्र से चयन सूची में नीचे अवस्‍थित अभ्‍यर्थी, मेरिटक्रम में ऊपर अवस्‍थित अभ्‍यर्थियों से ज्‍येष्‍ठ नहीं होंगे।

अत: यह विधि सुप्रतिष्‍िठत है कि आयोग अथवा चयन समिति द्वारा जिस मेरिटक्रम में चयनित अभ्‍यर्थियों की चयन सूची तैयार की गयी है उसी क्रमानुसार उन अभ्‍यर्थियों की पारस्‍परिक ज्‍येष्‍ठता अवधारित की जाएगी।

32. देवेन्‍द्र प्रसाद शर्मा बनाम मिजोरम राज्‍य (1997) 4 एस.सी.सी. 422) के मामले में तथ्‍य इस प्रकार थे कि अपर पुलिस अधीक्षक के पद पर पदोन्‍नति हेतु विचार के लिए विभागीय प्रोन्‍नति समिति की बैठक दिनांक 6.10.88 को हुई थी। जिसमें श्री शर्मा को अनुपयुक्‍त पाया गया था, उससे कनिष्‍ठ अधिकारियों को पदोन्‍नति के लिए उपयुक्‍त पाया गया एवं उन्‍हें दिनांक 20.10.88 को अपर पुलिस अधीक्षक के पद पर पदोन्‍नत कर दिया गया। उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा कि यदि श्री शर्मा किसी पश्‍चातवर्ती चयन में पदोन्‍नति के लिए उपयुक्‍त पाए जाएं तो भी वह उन अधिकारियों से ज्‍येष्‍ठ नहीं हो सकते जिन्‍हें पूर्ववर्ती चयन में उपयुक्‍त पाने के उपरान्‍त प्रोन्‍नत किया जा चुका है। उच्‍च पद पर पदोन्‍नत होने के उपरान्‍त निचले पद की ज्‍येष्‍ठता महत्‍वहीन हो जाती है।

33. राम गनेश त्रिपाठी बनाम उत्‍तर प्रदेश राज्‍य (1997) 1 एस.सी.सी. 621) में उच्‍चतम न्‍यायालय ने उत्‍तर प्रदेश पालिका (केन्‍द्रीयकृत) सेवा नियमावली, 1966 के संगत नियमों के संदभर् में अवधारणा किया है कि ऐसे तदर्थ कर्मचारियों को, जिन्‍हें लोक सेवा आयोग से चयनित अभ्‍यर्थियों की नियुक्‍ति के उपरान्‍त विनियमित किया जाए, नियमित ढंग से नियुक्‍त व्‍यक्‍तियों से ज्‍येष्‍ठ नहीं किया जा सकता है। तदर्थ कर्मचारियों की ज्‍येष्‍ठता उनके विनियमितीकरण की तिथि से अवधारित की जाएगी।

तदर्थ नियुक्‍ति नियमानुसार की गयी नियुक्‍ति नहीं होती है अत: ऐसी नियुक्‍ति के आधार पर की गयी अस्‍थायी सेवा को ज्‍येष्‍ठता निर्धारण के लिए आगणित नहीं किया जा सकता है। (वी. श्रीनिवास रेड्डी बनाम आन्‍ध्र प्रदेश राज्‍य, 1994 (5) एस.एल.आर. 715)

उच्‍चतम न्‍यायालय (बी.पी. श्रीवास्‍तव बनाम मध्‍य प्रदेश राज्‍य,1996 (1) एस.एल.आर. 819) ने कहा कि सीधी भर्ती द्वारा नियुक्‍त किए गए व्‍यक्‍ति, तदर्थ रूप से प्रोन्‍नत किए गए व्‍यक्‍तियों से, ज्‍येष्‍ठ होंगे।

34. भारतीय खाद्य निगम बनाम थानेश्‍वर कालिता एवं अन्‍य (1995 (2) एस.एल.आर. 425 (उच्‍चतम न्‍यायालय) में उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा है कि यदि नियुक्‍तियां नियमानुसार की गयी हों, भले ही आरम्‍भ में तदर्थ आधार पर की गयी हो, एवं लम्‍बी अवधि तक जारी रखी गयी हों तो उनकी सेवा का विनियमितीकरण करने पर अस्‍थायी सेवा की सम्‍पूर्ण अवधि, ज्‍येष्‍ठता के लिए आगणित की जाएगी। यदि विहित कोटा से अधिक नियुक्‍तियां की गयी हों तब अस्‍थायी/स्‍थानापन्‍नता की अवधि को ज्‍येष्‍ठता के लिए आगणित नहीं किया जाएगा तथा जो व्‍यक्‍ति विहित कोटा से अधिक संख्‍या में नियुक्‍त किये गये हैं वे ज्‍येष्‍ठता के लिए, सम्‍पूर्ण सेवा अवधि की गणना कराने के हकदार नहीं होंगे।

35. केशव देव बनाम उत्‍तर प्रदेश राज्‍य (जे.टी. 1998(7) एस.सी. 216) के मामले में श्री केशव देव एवं अन्‍य लोक निर्माण विभाग में अवर अभियन्‍ता के पद पर नियुक्‍त किये गये थे। दिनांक 30.5.79 को उन्‍हें तदर्थ आधार पर, प्रोन्‍नति के लिए विहित कोटा के अन्‍दर, सहायक अभियन्‍ता के पद पर प्रोन्‍नत किया गया था। विभागीय प्रोन्‍नति समिति द्वारा चयन कराने के उपरान्‍त उनकी उक्‍त चर्चित पदोन्‍नति की गयी थी। आयोग के माध्‍यम से चयनित अभ्‍यर्थियों को दिनांक 9.8.79 को सीधे सहायक अभियन्‍तागण को वर्ष 1980 में आयोग के समक्ष साक्षात्‍कार हेतु बुलाया गया था किन्‍तु केशव देव को नहीं बुलाया गया। जब वर्ष 1984 में साक्षात्‍कार हुआ तब उन्‍हें बुलाया गया एवं आयोग ने उनकी प्रोन्‍नति को अनुमोदित करके उन्‍हें चयनित कर लिया। तत्‍पश्‍चात् उन्‍हें सहायक अभियन्‍ता के रूप में स्‍थायी कर दिया गया। ऐसे परिस्‍थिति में उच्‍चतम न्‍यायालय ने इन प्रोन्‍नत सहायक अभियन्‍तागण को उक्‍त चर्चित प्रोन्‍नतियों की आरम्‍भिक तिथि से अर्थात् निरन्‍तर स्‍थानापन्‍नता की अवधि को जोड़ते हुए ज्‍येष्‍ठता अवधारण को उचित ठहराया।

अत: यदि पदोन्‍नति, विहित कोटा के अन्‍दर अन्‍तरिम व्‍यवस्‍था के लिए या तदर्थ रूप से, नियमानुसार चयन के उपरान्‍त की गयी हो एवं उसके पश्‍चात उसे आयोग द्वारा अनुमोदित कर दिया गया हो तो उस व्‍यक्‍ति की ज्‍येष्‍ठता उसकी तदर्थ प्रोन्‍नति की तिथि से आगणित की जाएगी, अर्थात् निरन्‍तर स्‍थानापन्‍न की अवधि को भी जोड़ा जाएगा, जब तक कि नियमों में अन्‍यथा व्‍यवस्‍था न हो।

36. एल. चन्‍द्र किशोर सिंह बनाम मणिपुर राज्‍य (1999) 8 एस.सी.सी.287) में प्रोन्‍नति एवं सीधी भर्ती से नियुक्‍त पुलिस अधिकारीगण की ज्‍येष्‍ठता का विवाद था, जिसके संदभर् में उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा कि स्‍थानापन्‍न या परिवीक्षा पर की गयी नियुक्‍तियों को संपुष्‍ट कर देने पर निरन्‍तर स्‍थानापन्‍न अवधि की सेवा की, ज्‍येष्‍ठता निर्धारण करते समय, उपेक्षा नहीं की जा सकती है, जब तक कि सेवा नियमों में इसके प्रतिकूल उपबन्‍ध न हों। जहां विहित प्रक्रिया का अनुसरण किये बगैर प्रथम नियुक्‍ति कर ली गयी हो एवं बाद में ऐसी नियुक्‍ति को अनुमोदित कर दिया जाए, अथवा संपुष्‍ट कर दिया जाए, तब सम्‍पूर्ण सेवा अवधि को ज्‍येष्‍ठता निर्धारण करते समय आगणित किया जाएगा।

37.सूरज प्रकाश गुप्‍ता बनाम जम्‍मू कश्‍मीर राज्‍य (जे.टी. 2000 (5) एस.सी. 413) में उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा दी गयी नवीनतम निर्णयजविधि से यह स्‍पष्‍ट है कि तदर्थ अथवा स्‍थानापन्‍न रूप से प्रोन्‍नत सेवकों की नियमित प्रोन्‍नति होने पर, सीधी भर्ती से नियुक्‍त किये गये सेवकों के साथ, ज्‍येष्‍ठता निर्धारण निम्‍नलिखित ढंग से किया जाएगा:-

(1) जब प्रोन्‍नत कोटा के सापेक्ष तदर्थ अथवा स्‍थानापन्‍न रूप से प्रोन्‍नत सेवकों की लोक सेवा आयोग के माध्‍यम से नियमित प्रोन्‍नति कर दी जाए अथवा विभागीय चयन समित के माध्‍यम से उनकी तदर्थ प्रोन्‍नति को विनियमित कर दिया जाए तब ऐसी नियमित प्रोन्‍नति को उस पूर्ववर्ती तिथि से जोड़ा जा सकता है जिस तिथि को प्रोन्‍नत कोटा में रिक्‍ति हुई थी। इस प्रकार प्रोन्‍नत सेवकों की ज्‍येष्‍ठता उनकी नियमित प्रोन्‍नति की उक्‍त चर्चित पूर्ववर्ती तिथि से आगणित की जाएगी। सीधी भर्ती से नियुक्‍त सेवकों की ज्‍येष्‍ठता उनकी नियमित अर्थात् अधिष्‍ठायी नियुक्‍ति की तिथि से आगणित की जाएगी।

(2) जब प्रोन्‍नत कोटा से अधिक सेवकों को तदर्थ अथवा स्‍थानापन्‍न रूप से प्रोन्‍नत किया गया हो तब प्रोन्‍नत कोटा में उनके लिए हुई पश्‍चातवर्ती रिक्‍ति के सापेक्ष उनका विनियमितीकरण किया जाएगा। प्रोन्‍नत कोटा में जिस तिथि को रिक्‍ति हुई हो उससे पूर्व की सेवा अवधि जोड़ी नहीं जाएगी अर्थात ज्‍येष्‍ठता के लिए आगणित नहीं की जाएगी।

(3) यद्यपि प्रोन्‍नत कोटा के सापेक्ष तदर्थ अथवा स्‍थानापन्‍न रूप से प्रोन्‍नति की गयी हो किन्‍तु वह सेवक प्रोन्‍नति के लिए अर्ह ही न रहा हो तब प्रोन्‍नति की ऐसी सेवा अवधि भी ज्‍येष्‍ठता निर्धारण के लिए आगणित नहीं की जाएगी।

(4) तदर्थ अथवा स्‍थानापन्‍न रूप से प्रोन्‍नत सेवक जितनी अवधि तक नियमित प्रोन्‍नति के लिए उपयुक्‍त न पाया गया हो वह सेवा अवधि भी ज्‍येष्‍ठता निर्धारण के लिए आगणित नहीं की जाएगी।

(5) सीधी भर्ती के कोटा के सापेक्ष प्रोन्‍नत सेवक की नियमित सेवा भी ज्‍येष्‍ठता निर्धारण के लिए आगणित नहीं की जाएगी।

← अनुशासनिक कार्यवाही में दण्‍डित किया गया सेवक पदोन्‍नति पर विचार किए जाने के लिए योग्‍य नहीं।

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