हाल ही में पिछले कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के परिषदीय स्कूलों में कार्यरत शिक्षकों के ऑफिशियल और निजी व्हाट्सएप ग्रुप पर किसी दैनिक समाचार पत्र की खबर की एक कटिंग बहुत वायरल हुई जिसका शीर्षक था।”गायब शिक्षकों का कटेगा वेतन : सीएमओ”
जी हां; ” सीएमओ” मतलब “चीफ मेडिकल ऑफिसर” हिंदी में कहें तो मुख्य चिकित्सा अधिकारी। अब बात ये है कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी के द्वारा परिषदीय स्कूलों के शिक्षकों का निरीक्षण कब से होने लगा? या फिर शिक्षकों के निरीक्षण का अधिकार बेसिक शिक्षा विभाग ने सीएमओ को दे दिया । तो सबका उत्तर होगा “इंपॉसिबल”।
तो यह उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के मुख्य चिकित्सा अधिकारी के द्वारा उसी जनपद के शिक्षकों का इंपॉसिबल निरीक्षण कैसे पॉसिबल हुआ? कैसे किसी समाचार पत्र ने किसी सीएमओ के द्वारा किए गए निरीक्षण में गायब मिले शिक्षकों के वेतन काटने की खबर छाप दी? आइए जानते हैं विस्तार से आखिर क्या है पूरा मामला…
पिछले कुछ दिन पहले जनपद गाजियाबाद में किसी समाचार पत्र के रीजनल कॉलम में “गायब शिक्षकों का कटेगा वेतन : सीएमओ” नामक शीर्षक से खबर छपी। शीर्षक के बाद नीचे खबर में लिखा गया कि” सीएमओ डा. भवतोष शंखधर ने सोमवार को ग्रामीण क्षेत्र के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों का आकस्मिक निरीक्षण किया जिसमें पीएचसी भोजपुर, फरीदनगर, तलहैटा और त्यौड़ी में कई चिकित्सक, सीएचओ और एएनएम ड्यूटी से गायब मिले। सीएमओ ने अनुपस्थित स्टाफ का एक दिन का वेतन काटने के आदेश जारी कर दिया।
नीचे लिखी हुए खबर पूरी तरह से ठीक ठाक ; मगर खबर का शीर्षक अपनी कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहा है। अभी हम बात करेंगे आगे की खबर की मगर इससे पहले हम आपको बता दें कि किसी भी प्रकार की मीडिया के इतिहास में यह माना जाता है कि किसी भी खबर के चलने की पूरी ताकत उसके शीर्षक में होती है। शीर्षक करामाती होगा तो ऑनलाइन ऑफलाइन यूजर उस खबर को पूरा जरूर पढ़ेंगे।
मगर इस खबर में ऐसा कुछ नहीं है। जो कोई भी इस खबर को पढ़ेगा या फिर जिन शिक्षकों ने भी व्हाट्सएप ग्रुप में इस खबर के बाद डिस्कस किया तो उसमें प्रूफरीडर की ही गलती मानी या फिर यह भी कहा जा सकता है कि यह छोटी सी मानवीय भूल है। मगर यह बात यहां पर खत्म नहीं होती बल्कि और बढ़ जाती है आइए जाने कैसे?
नाम ना लिखने की शर्त पर एक शिक्षक ने कहा कि किसी भी समाचार पत्र या मीडिया के पत्रकारों को जब अपने कार्यालय में बैठे-बैठे कोई ऐसी सूचना प्राप्त होती है जिसमें अधिकारी , शिक्षक , निरीक्षण , गायब , तालाबंद, आदि शब्दों का प्रयोग किया गया हो तो पत्रकारों की करामाती कलम या फिर कह लीजिए कि कंप्यूटर पर चलने वाली उंगलियां में गजब की फुर्ती और तेजाबियत आ जाती है जिसके बाद ऐसे पत्रकार आनन-फानन में चिराग से निकले जिन्न की तरह अपने कार्य को उल्टा सीधा संपादित कर अपनी ही पीठ थपथपा लेते हैं।
यहां तक की खबरों में शीर्षक, वर्तनी की अशुद्धियों को पढ़ने वाले प्रूफरीडर के दिमाग का भी दही जम जाता होगा जब वो निरीक्षण और गायब जैसे शब्दों को सुनते होंगे जैसा कि ऊपर बताई हुई खबर में हुआ वैसे तो मानवीय भूल है मगर यह भी अतिशयोक्ति है कि ऐसी मानवीय भूल में शिक्षकों का बेड़ा गर्क करने में पत्रकार बंधुओं के द्वारा भी सक्रिय भूमिका निभाई जाती है।
और तो और सबसे बड़ी बात यह है की हाल ही में शिक्षा महानिदेशक विजय किरण आनंद के द्वारा जारी एक आदेश में इस बात से हैरानी जताई गई कि पिछले 4 माह में 3801 स्कूलों के निरीक्षण में कैसे कोई शिक्षक अनुपस्थित नहीं मिला। मतलब आदेश के मुताबिक शिक्षकों को अनुपस्थित मिलना चाहिए था।
खैर ऐसे आदेश और मीडिया में छपने वाली खबरों के बावजूद उत्तर प्रदेश के परिषदीय स्कूलों में कार्यरत शिक्षकों ने 4 मई को हुए निकाय चुनाव के पहले चरण के मतदान को संपन्न कराने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई और नगर निकाय के दूसरे चरण के होने वाले 11 मई के मतदान में अपनी सक्रिय सहभागिता निभाने को तैयार हैं।
गौरतलब है कि यूपी में परिषदीय स्कूलों के शिक्षकों का निरीक्षण शिक्षा विभाग के BSA, BEO, एडी बेसिक , डीआईओएस डायट प्राचार्य, डायट के सीनियर प्रवक्ता, मेंटर , SRG, ARP , टास्क फोर्स टीम और शिक्षा महानिदेशक के द्वारा गठित टीमों के द्वारा होता ही है इसके अलावा जिले के जिलाधिकारी, ADM, SDM, VDO, या अन्य समस्त अधिकारियों के द्वारा भी किया जाता है।