सोशल मीडिया पर विशेष तौर से परिषदीय शिक्षकों को नकारा और निकम्मा कहकर जब तब अन्य लोगों द्वारा ट्रोल किया जाता रहता है। सोशल मीडिया पर ही शिक्षकों को हर कोई सर्टिफिकेट भी बाँट रहा है तो कोई सरकार को नई नई मुफ्त की राय दे रहा है।
परिषदीय शिक्षकों के लिए अपमानजनक संदेश, कार्टून, फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट करना तो अब आम है। टेक्स्ट फॉर्मेट में जलील करने के लिए तो हर कोई पीएचडी किये हुए बैठा है। इन सभी का लक्ष्य यह होता है कि किसी भी तरह सफ़ल और सरकारी कर्मचारियों को इस बाबत गालियां देना कि खुद को छोड़ सब नकारा हैं। इनको लगता है गालियां देनी हो तो गालियां दो, मजाक बनाना हो तो मजाक बनाओ। सामने वाले को इतना लज्जित कर दो कि वह आगे सोशल मीडिया पर आए ही नहीं।
नायक को खलनायक और खलनायक को नायक बना देंगे और ऊपर से शेखी बघारेंगे कि ज्ञान की पूरी गंगा तो उन्हीं के पास है। किसी साधारण सी बात से भी अगर ये असहमत हो जाएं, तो इतना आक्रामक लिखेंगे कि सामने वाला लज्जित हो जाए। इसमें टुच्चई वाली व्यंग्य की धार होगी, गालियों की बौछार होगी, पैरोडियां – लतीफे होंगे । उस पर गरज यह है कि कुछ भी हो, बस सामने वाले पर आक्रामक बने रहो।
सोशल मीडिया पर बिना बात के ट्रोल करने वालों की भी बढ़ी संख्या है। अपने आप में कुंठित और असफल हो चुके हज़ारों- लाखों लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं जिन्हें शिक्षकों में कमियाँ ही कमियाँ नजर आती है। ऐसे लोगों को लाइक्स और फॉलोअर्स की भूख होती है, इन्हें लगता है कि पूरी दुनिया इनकी हर बात को लाइक करें और उनको फॉलो करती रहे। इस तरह के लोगों को यह मुगालता होता है कि वे दुनिया के महानतम लोग है।