शासन द्वारा भेजे गए पत्र में कहा गया है कि विभाग के विरुद्ध योजित / लम्बित वादों व उसके प्रतिशपथ – पत्र दाखिल किये गये पत्रों के संबंध में समीक्षा किये जाने हेतु कड़े निर्देश दिये जा चुके हैं , जिसके संबंध में आपके स्तर से कार्यवाही गतिमान है,साथ ही माननीय उच्च न्यायालय व माननीय उच्चतम न्यायालय में कतिपय ऐसे वाद आज भी लम्बित है जो विशेष महत्व के हैं लेकिन समय से प्रभावी पैरवी न होने के कारण विभाग व शासन को विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है और विभाग की छवि धूमिल होती है।
पत्र में शिक्षा निदेशक बेसिक ने कहा है कि ऐसी अप्रिय स्थिति से बचने के लिए इन महत्वपूर्ण वादों के निस्तारण के संबंध में विशेष पैरवी के लिए विशेषज्ञ को नामित कराने की भी आवश्यकता होती है , जिससे विभाग व शासन को प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाया जा सके । अतः ऐसी स्थिति में माननीय उच्च न्यायालय एवं माननीय उच्चतम न्यायालय में योजित वादों की समीक्षा करते हुए उन महत्वपूर्ण वादों का विवरण पत्र में दिए गये संलग्न प्रारूप के अनुसार कार्यालय को अगले दो दिन के अन्दर उपलब्ध कराएं , साथ ही जिन कतिपय रिट याचिकाओं के संबंध में विशेष पैरवी की आवश्यकता हो उनका भी विवरण उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें ।
हालाँकि उत्तर प्रदेश का बेसिक शिक्षा विभाग सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में 16000 मुकदमों से जूझ रहा है। इनमें से लगभग 12000 मुकदमे हाई कोर्ट में लंबित हैं। लंबित मुकदमों में से 2000 मामलों में विभाग की ओर से प्रति शपथपत्र दाखिल नहीं कराया गया है। विभाग के खिलाफ बड़ी संख्या में दायर होने वाले मुकदमों की संख्या में कमी लाने और उनकी प्रभावी मानीटरिंग के लिए बेसिक शिक्षा मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. सतीश चंद्र द्विवेदी ने विभागीय अधिकारियों की एक समिति बनाने का निर्देश भी पूर्व में दिया है जो कि इस पर अपनी रिपोर्ट देगी।