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भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। हिंदू धर्म में अनंत चौदस का विशेष महत्व है। चतुर्दशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूपों की उपासना की जाती है औऱ आज गणेश महोत्सव के अंतिम दिन गणपति विसर्जन कर बप्पा को विदाई दी जाएगी। इस तिथि को हिंदू धर्म में अनंत चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है।
आज 19 सितंबर को हिंदू पंचांग के अनुसार रविवार है और रविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित माना जाता है। जीवन में सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति और शत्रुओं से सुरक्षा के लिए रविवार का व्रत सर्वश्रेष्ठ है। मान्यता है कि रविवार का व्रत करने व कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और 14 गांठों वाला रक्षा सूत्र बांह में बांधा जाता है कहते हैं कि 14 गांठे 14 लोकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस दिन श्री हरि का व्रत और विधि विधान से की गई पूजा से सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिलती है। इतना ही नहीं मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से अक्षय पुण्य यानी कभी न खत्म होने वाले पुण्य की प्राप्ति होती है।
अनन्त सूत्र की 14 गांठों का रहस्य
अनंत चतुर्दशी के दिन शुभ मुहूर्त में पूजा करने के बाद अनंत सूत्र को हाथ में बांधा जाता है। इस अनंत सूत्र में 14 गांठें लगाई जाती है। 14 गांठें इसलिए लगाई जाती हैं क्योंकि 14 गांठ को 14 लोकों से जोड़कर देखा जाता है।धार्मिक मान्यता है कि भौतिक जगत में 14 लोक बनाए जिनमें भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक, ब्रह्मलोक, अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल लोक शामिल है बता दें कि अनंत सूत्र में लगने वाली हर एक गांठ एक लोक का प्रतिनिधित्व करती है।अनंत सूत्र को हाथ में बांधा जाता है।
अनंत सूत्र बांधने के नियम
अनंत सूत्र हाथ में बांधने के कई नियम भी होते हैं इसलिए इन्हें हमेशा ध्यान में रखना जरूरी होता है कहते हैं अनंत सूत्र कपड़े या रेशम का होता है मान्यता है कि अनंत सूत्र को पुरुष दाहिने और महिलाओं को अपने बाएं हाथ में पहने। इस दिन व्रत रखने का भी विधान है कहते हैं इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु जी की उपासना करनी चाहिए। व्रत रखने से भगवान जल्दी प्रसन्न होते हैं और उनका आर्शीवाद प्राप्त होता है।
अनंत चतुर्दशी तिथि
अनंत चतुर्दशी तिथि 19 सितंबर रविवार के दिन सुबह 5:59 बजे से शुरू होगी और 20 सितंबर सोमवार को सुबह 5:28 बजे समाप्त होगी. इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त रविवार सुबह 6:08 बजे से सोमवार सुबह 5:28 बजे तक है. जिसमें किसी भी समय गणपति जी का विसर्जन किया जा सकता है।
अनंत चतुर्दशी की पूजा विधि
चतुर्दशी के दिन अगर आप व्रत रखने की सोच रहे हैं तो बता दें कि अनंत चतुर्दशी के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद साफ वस्त्र पहनें और व्रत का संकल्प लें इसके बाद पूजा स्थल पर एक कलश की स्थापना करें। इस कलश पर एक धातु का पात्र रखें और उसके ऊपर कुश से भगवान अनंत की स्थापना करें। बता दें कि भगवान विष्णु के शेषनाग को अनंत कहा जाता है इसलिए इस चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है अनंत चतुर्दशी के दिन उनकी पूजा का विधान है।
पूजा के समय एक सूत या रेशम के धागे को हल्दी या केसर से रंगकर उसमें 14 गांठें लगा लें इसके बाद इस रक्षा सूत्र को भगवान अनंत को अर्पित करें और पंचोपचार या षोढ़शोपचार विधि से पूजन करें। व्रत के दिन व्रतकथा और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करें। इसे विशेष फलदायी माना जाता है। भगवान विष्णु के पूजन के बाद लंबी आयु और सभी कष्टों से मुक्ति के लिए अनंत सूत्र को हाथ में बांध लें कहते हैं कि इस दिन भगवान विष्णु का व्रत करने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।
10 दिवसीय गणेश महोत्सव का समापन अनंत चतुर्दशी के दिन किया जाता है। धार्मिक दृष्टि से अनंत चतुर्दशी का दिन बहुत खास होता है। इस दिन विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करने और व्रत रखने से भगवान विष्णु को जल्दी प्रसन्न किया जा सकता है। 19 सिंतबर को देशभर में गणेश विसर्जन के साथ अनंत चौदस का पर्व भी मनाया जाएगा।
आज विसर्जन का समय
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार रविवार को गणेश प्रतिमा का विसर्जन करने के लिए तीन शुभ मुहूर्त हैं-
● सुबह 9 से दोपहर 12 बजे तक।
● दोपहर 1.30 बजे से 3 बजे तक।
● शाम को 6 बजे से सूर्यास्त से पहले तक।
ध्यान रखें सूर्यास्त से पहले प्रतिमा का विसर्जन कर देना चाहिए, अगर सूर्यास्त तक प्रतिमा विसर्जित न हो सके तो अगले दिन विसर्जन करना चाहिए। विसर्जन से पहले गणेश जी का विधिवत पूजन जरूर करें।
जानिए भगवान श्रीगणेश विर्जसन विधि और शुभ मुहूर्त-
श्री गणेश की प्रतिमा को विसर्जित करने से पहले उसका विधि-विधान से पूजन कर मोदक और फल का भोग लगाकर आरती उतारें और विदाई लेने की प्रार्थना करें इसके बाद एक लकड़ी के पटरे पर लाल वस्त्र बिछाएं उस पर गंगाजल छिड़ककर गणेश जी को रखें, साथ ही इसमें फल, फूल, मोदक और कपड़े रखें फिर चावल, गेहूं और पंचमेवा की पोटली तैयार करें और इसमें कुछ सिक्के डालें। इस पोटली को गणेश जी के पास रखें इसके बाद बप्पा का विसर्जन के लिए ले जाएं। विसर्जन से पहले भगवान गणेश की एक बार फिर आरती उतारें और अगले वर्ष जल्दी आने की कामना करें। भगवान श्रीगणेश से अपनी मनोकामना और परिवार की खुशहाली का अनुरोध करें।अब बहते हुए जल में बप्पा को विसर्जित कर दें।
गणपति विसर्जन के समय इन बातों का रखें ध्यान
● गणेश विसर्जन नदी, तालाब, कुंड या फिर गमले में ही करें।
● अगर नदी में विसर्जन कर रहे हैं तो नदी के साफ पानी में बप्पा का विसर्जन करें।
● इस बात का ध्यान रखें कि गणेश जी की प्रतिमा को पानी में फेंकना नहीं बल्कि आदर के साथ विसर्जित करना चाहिए।
● कोरोना के इस दौर में अगर आप बप्पा की मूर्ति का विसर्जन घर की छत या गार्डन में किसी गमले में करें तो बेहतर होगा।
निम्न राशि वाले अनंत चतुर्दशी के दिन शनि के अशुभ प्रभावों से मुक्ति के लिए करें ये छोटा सा उपाय
इस समय कुंभ, मकर, धनु राशि पर शनि की साढ़ेसाती और मिथुन, तुला राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या की वजह से व्यक्ति का जीवन बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से पीड़ित व्यक्ति को विधि- विधान से भगवान गणेश की पूजा- अर्चना करनी चाहिए। भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए अनंत चतुर्दशी के पावन दिन श्री गणेश चालीसा का पाठ करें और भगवान गणेश को भोग अवश्य लगाएं। आगे पढ़ें श्री गणेश चालीसा…
श्री गणेश चालीसा | Shree Ganesh Chalisa
जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल॥
जय जय जय गणपति राजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥
जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजित मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगंधित फूलं॥
सुंदर पीतांबप तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विधाता॥
ऋद्धि सिद्धि तव चंवर डुलावे। मूषक वाहन सोहत द्वारे॥
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगल कारी॥
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।
अतिथि जानि कै गौरी सुखारी। बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥
अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥
मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥
अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै। पलना पर बालक स्वरूप ह्वै॥
बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥
सकल मगन सुख मंगल गावहिं। नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं॥
शम्भु उमा बहुदान लुटावहिं। सुर मुनि जन सुत देखन आवहिं॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आए शनि राजा॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक देखन चाहत नाहीं॥
गिरजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर न शनि तुहि भायो॥
कहन लगे शनि मन सकुचाई। का करिहौ शिशु मोहि दिखाई॥
नहिं विश्वास उमा कर भयऊ। शनि सों बालक देखन कह्यऊ॥
पड़तहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक शिर उड़ि गयो आकाशा॥
गिरजा गिरीं विकल ह्वै धरणी। सो दुख दशा गयो नहिं वरणी॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्ह्यों लखि सुत को नाशा॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाए। काटि चक्र सो गज शिर लाए॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ शंकर डारयो॥
नाम गणेश शंभु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी की प्रदक्षिणा लीन्हा॥
चले षडानन भरमि भुलाई। रची बैठ तुम बुद्धि उपाई॥
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥
धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहस मुख सकै न गाई॥
मैं मति हीन मलीन दुखारी। करहुँ कौन बिधि विनय तुम्हारी॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। लख प्रयाग ककरा दुर्वासा॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै। अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥
दोहा
श्री गणेश यह चालीसा पाठ करें धर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै लहे जगत सन्मान॥
सम्वत् अपन सहस्र दश ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो मंगल मूर्ति गणेश॥